शिवजी के पसीने की एक बूंद से हुआ था यहां मंगलनाथ का जन्म

Sunday, Mar 11, 2018 - 10:42 AM (IST)

उज्जैन एक अत्यंत प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्रत्येक 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। इस महान धार्मिक नगरी का महत्व श्रुति से लेकर ब्राह्मण, जैन, बौद्ध, पाली ग्रंथों और उपनिषदों में भी प्रतिपादित है। यह नगरी पाप का नाश करने वाली और मोक्ष प्रदायिनी मानी गई है। यहां के राजा अधिष्ठा विश्व प्रसिद्ध कालों के काल आदि देवता भगवान श्री महाकाल हैं।


यहां महाकाल के साथ एक मंगलनाथ मंदिर भी स्थित है। पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहां पूजा-पाठ करवाने आते हैं। यूं तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने के कारण यहां की पूजा को खास महत्व दिया जाता है।


 

निर्माण
लोक मान्यता अनुसार यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहां मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।


 

पौराणिक कथा
कहा जाता है कि एक अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी। तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की। भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। शिवजी का पसीना बहने लगा, उनके पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। स्कंध पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है। 

मान्यता
मंदिर में हर मंगलवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में  ग्रह शांति की पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में मंगल होता है, वे मंगल शांति के लिए विशेष पूजा अर्चना करवाते हैं। इसी धारणा के चलते हर साल हजारों नवविवाहित जोड़े, जिनकी कुंडली में मंगलदोष होता है, यहां पूजा-पाठ कराने आते हैं।

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