शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन

Wednesday, Oct 02, 2019 - 02:28 PM (IST)

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जैसे कि आप सब जानते हैं आज शारदीय नवरात्रि चौथा दिन है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। आज इसी खास मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि कुष्मांडा मां के प्राचीन मंदिर के बारे में जो बहुत ही खास माना जाता है। बता दें हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के सागर-कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित देवी कुष्मांडा के मंदिर की।

बता दें इस प्राचीन मंदिर में देवी कुष्मांडी लेटी हुई मुद्रा में विराजित है। पिंड स्वरूप में यहां विराजमान देवी के पिंड से हर समय पानी रिसता रहता है। जिसे लेकर मान्यता प्रचलित है इस पानी को पीने वाले जातक को अपनी हर छोटी-बड़ी बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। पौराणिक कथाओं व धार्मिक मान्यताओं की मानें तो जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था उस समय देवी कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। जिस कारण इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति भी कहा जाता है।

यहां मां कुष्मांडा लेटी हुईं मुद्रा में हैं। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता है। मान्यता है कि इस पानी को पीने से कई तरह के रोग दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। यही कारण है कि इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना जाता है।

मंदिर से जुड़ा इतिहास
बताया जाता है देवी कूष्मांडा का ये मंदिर मराठा शैली में निर्मित किया गया था। यहां स्थापित मूर्तियां दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुड़हा नामक एक ग्वाले की गाय अपना दूध झाड़ी में गिरा देती थी। गाय द्वारा यह काम रोज़ाना हर दिन किया जाता था। एक दिन ये नज़ारा देखकर कुड़हा ने यहां खुदाई की तो उसे यहां पर मूर्ति दिखाई दी। काफी खुदाई करने के बाद भी उसे इस मूर्ति का अंत नहीं मिला तो उसने इस स्थान पर एक चबूतरे का निर्माण करवा दिया।

लोक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में चंदीदीन भुर्जी ने करवाया था। बताया जाता है कि 1988 से ही इस मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है।

इस रहस्य से अंजान है दुनिया
यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हुईं हैं, जिससे लगातर पानी रिसता रहता है। मगर इसका कारण व रहस्य आज तक कोई वैज्ञानिक नहीं जान पाया कि आख़िर ये रिसने वाला पानी कहां से आता है। मान्यता है कि सूर्योदय से पूर्व स्नान कर 6 माह तक जो भी इस जल का प्रयोग करता है, उसकी हर तरह की बीमारी ठीक हो जाती है। इसके अलावा मंदिर परिसर में दो तालाब भी हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि दोनों तालाब आज तक कभी सुखे नहीं हैं। इनमें हर मौसम में पानी भरा रहता है।

 

Jyoti

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