Swami Vivekananda Punyatithi: स्वामी विवेकानंद ने महिला से छेड़छाड़ करने वालों को यूं दिया जवाब

Sunday, Jul 03, 2022 - 01:19 PM (IST)

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Swami Vivekananda Punyatithi 2022: एक बार स्वामी विवेकानंद कहीं जा रहे थे। उन्हीं के डिब्बे में एक महिला अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी, उसी डिब्बे में दो अंग्रेज भी सफर कर रहे थे। थोड़ा ही समय बीता था कि अंग्रेज उस महिला को परेशान करने लगे। वे काफी देर तक महिला के बारे में गंदी और ऊट-पटांग बातें करते रहे। वे अंग्रेजी में बात कर रहे थे और वह भारतीय महिला अंग्रेजी जानती नहीं थी इसलिए वह चुप रही। उन दिनों भारत अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों का भारतीयों से दुर्व्यवहार करना आम बात थी, लोग उनका विरोध करने का साहस नहीं करते थे। विरोध न करने के कारण अंग्रेजों का हौसला बढ़ा। अब वे महिला को परेशान करने पर उतर आए। वे कभी उसके बच्चे का कान मरोड़ देते, कभी उसके गाल पर चुटकी काटते, कभी महिला के बाल पकड़ कर झटका देते।


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स्वामी विवेकानंद उन दोनों अंग्रेजों की बातें सुन और समझ रहे थे। अगला स्टेशन आने पर महिला ने डिब्बे के दूसरी ओर बैठे पुलिस के एक भारतीय सिपाही से अंग्रेजों की शिकायत की।

सिपाही आया और अंग्रेजों को देखकर चला गया। अगले स्टेशन से ट्रेन चलनी शुरू हुई तो अंग्रेजों ने फिर महिला और उसके बच्चे को तंग करना शुरू कर दिया। अब स्वामी विवेकानंद से नहीं रहा गया। वह समझ गए थे कि ये ऐसे नहीं मानने वाले हैं। वह अपने स्थान से उठे और दोनों अंग्रेजों के सामने जाकर खड़े हो गए। उनकी सुगठित काया को देखकर दोनों अंग्रेज सहम से गए।



विवेकानंद ने पहले तो बारी-बारी उन दोनों की आंखों में झांका फिर अपने दाएं हाथ की कुर्ते की आस्तीन ऊपर समेटी और हाथ मोड़ कर उन्हें अपने बाजुओं की सुडौल और कसी हुई मांसपेशियां दिखाईं,  फिर वह आकर अपने स्थान पर बैठ गए। अब अंग्रेजों ने तत्काल महिला व उसके बच्चे को परेशान करना बंद कर दिया। यही नहीं, अगला स्टेशन आते ही वे भीगी बिल्ली की तरह चुपचाप उठे और दूसरे डिब्बे में जाकर बैठ गए।

शिक्षा: हमें इस किस्से से जरूर यह सीखना चाहिए कि अगर हमारे साथ या हमारे सामने कभी भी किसी के साथ कोई अत्याचार या जुल्म हो रहा हो, तो हमें उसके खिलाफ तत्काल आवाज उठानी चाहिए। अगर हम उस अत्याचार को सहते रहेंगे तो अत्याचार करने वालों को इससे प्रोत्साहन मिलेगा और उनके अत्याचार बढ़ते जाएंगे। एक देश और समाज का नागरिक होने के नाते हमारा यह फर्ज बनता है कि हम जुल्म को सहें नहीं बल्कि उसके खिलाफ लड़ें।

Niyati Bhandari

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