Swami Vivekananda: जुल्म का हमेशा विरोध करो

Monday, Jul 04, 2022 - 12:29 PM (IST)

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स्वामी विवेकानंद रेल से कहीं जा रहे थे। वे रेल के जिस डिब्बे में बैठे थे उसमें एक महिला भी अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी। अगले स्टेशन पर दो अंग्रेज व्यक्ति उस डिब्बे में चढ़े और महिला के सामने वाली सीट पर बैठ गए। रेल अभी कुछ दूर चली थी कि उन अंग्रेजों ने उस महिला को अकेला जान कर उस पर अभद्र टिप्पणियां करनी शुरू कर दीं। उस समय अंग्रेजों का शासन था और सभी लोग उनसे डरते थे। इसलिए डिब्बे में बैठे किसी भी व्यक्ति ने उनके अभद्र व्यवहार के लिए विरोध नहीं किया।

विरोध न होने पर उनका दुस्साहस बढ़ता गया। उस महिला ने सहायता के लिए आसपास देखा तो सभी ने अपनी नजरें झुका लीं। तभी रेल में कुछ भारतीय सिपाही जो डिब्बे चैक करते हुए आ रहे थे, उस डिब्बे में पहुंचे। महिला ने उन सिपाहियों से उन व्यक्तियों की शिकायत की तो वे उन्हें देख कर अनसुना करके चले गए।
 

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स्वामी विवेकानंद दूर बैठे यह सब देख रहे थे। वे अपने स्थान से उठे और अंग्रेज व्यक्तियों के सामने जाकर बैठ गए। जैसे ही अंग्रेजों ने फिर से अभद्र टिप्पणी करनी चाही स्वामी विवेकानंद ने उनकी ओर घूरकर देखा और उनसे लडऩे के लिए अपनी बांहें चढ़ाने लगे। स्वामी विवेकानंद का व्यवहार देख कर दोनों अंग्रेज सहम गए और डर कर चुप बैठ गए। इसके बाद जब तक उनका स्टेशन नहीं आ गया, वे कुछ नहीं बोले। यह प्रसंग सिखाता है कि हम जुल्म को जितना अधिक सहेंगे वह उतना ही मजबूत होगा। अत: हर व्यक्ति को जुल्म का हमेशा विरोध करना चाहिए।

Jyoti

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