आप भी हैं अपनी Life से हताश और निराश तो ऐसी पूरी होगी हर आस
Monday, Sep 16, 2019 - 12:28 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
उन दिनों स्वामी विवेकानंद यूरोप में थे। इटली के एक सम्भ्रांत परिवार की महिला से उनकी दोस्ती हो गई थी। उस महिला ने उनसे अनुरोध किया कि वह उन्हें आसपास के इलाके में घुमाना चाहती है। वे दोनों घोड़ा-गाड़ी से घूमने निकले। चलते हुए वे शहर से बाहर आ गए। कोचवान ने एक जगह गाड़ी रोक दी और वह सड़क किनारे एक पार्क में चला गया। वहां एक वृद्ध महिला एक लड़के और एक लड़की का हाथ पकड़ कर बैठी थी।
कोचवान ने उन बच्चों को प्यार किया। बच्चों से कुछ देर बात करने के बाद वह फिर वहां से वापस आ गया और घोड़ा-गाड़ी चलाने लगा। उन दिनों वहां अमीर और गरीब के बीच बड़ा कठोर विभाजन था। वे बच्चे अभिजात लग रहे थे और कोचवान का इस तरह उन्हें प्यार करना प्रतिष्ठित परिवार की उस महिला को खटका। उन्होंने कोचवान से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया? कोचवान ने कहा, ‘‘वे मेरे बच्चे हैं।’’
कोचवान बोला, ‘‘एक समय मैं पैरिस के सबसे बड़े बैंक का मैनेजर था, तब मैं काफी धनवान था किन्तु परिस्थितिवश मैंने इतना घाटा उठाया कि उसे चुकाने में कई साल लग गए। अपनी पत्नी और बच्चों को मैंने इस जगह, किराए के एक मकान में रखा है। एक वृद्ध महिला उनकी देखभाल करती है। कुछ रकम जुटाकर मैंने घोड़ा-गाड़ी ले ली। खाली समय में यह चलाता हूं। इन बुरे दिनों में कुछ रकम इस तरह भी मिल जाती है। कर्ज उतर जाए और वक्त बदले तो मैं फिर से एक बैंक खोलूंगा और उसे विकसित करूंगा।’’
उसका आत्मविश्वास देखकर विवेकानंद बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी मित्र से कहा, ‘‘इसे वेदांत का मर्म मालूम है। अपनी हैसियत से गिरने के बाद भी अपने व्यक्तित्व और कर्म पर उसकी आस्था मजबूत है। यह अपने मकसद में अवश्य कामयाब होगा। कितनी भी विषम परिस्थिति क्यों न हो मनुष्य को कभी अपनी आस्था और लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए।’’