स्वामी प्रभुपाद: माया का द्वार या मुक्ति का मार्ग, जानिए क्यों होते हैं बार-बार जन्म और मृत्यु
punjabkesari.in Sunday, Oct 26, 2025 - 06:00 AM (IST)
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अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।8.18।।
अनुवाद : ब्रह्मा के दिन के शुभारंभ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुन: अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं।
भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रत्नीयते।

रात्र्यागमेऽवशः: पार्थ प्रभवत्यहरागमे॥8.19॥
अनुवाद: जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे असहायवत विलीन हो जाते हैं।
तात्पर्य: अल्पज्ञानी पुरुष, जो इस भौतिक जगत में बने रहना चाहते हैं, उच्चतर लोकों को प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु उन्हें पुन: इस धरालोक पर आना होता है। वे ब्रह्मा का दिन होने पर इस जगत के उच्चतर तथा निम्रतर लोकों में अपने कार्यों का प्रदर्शन करते हैं, किन्तु ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे विनष्ट हो जाते हैं।
दिन में उन्हें भौतिक कार्यों के लिए नाना शरीर प्राप्त होते रहते हैं, किन्तु रात्रि के होते ही उनके शरीर विष्णु के शरीर में विलीन हो जाते हैं। वे पुन: ब्रह्मा का दिन आने पर प्रकट होते हैं।

भूत्वा-भूत्वा प्रत्नीयते-दिन के समय वे प्रकट होते हैं और रात्रि के समय पुन: विनष्ट हो जाते हैं। अंततोगत्वा जब ब्रह्मा का जीवन समाप्त होता है, तो उन सबका संहार हो जाता है और वे करोड़ों वर्षों तक अप्रकट रहते हैं। अन्य कल्प में ब्रह्मा का पुनर्जन्म होने पर वे पुन: प्रकट होते हैं।
इस प्रकार वे सब भौतिक जगत के जादू से मोहित होते रहते हैं किन्तु जो बुद्धिमान व्यक्ति कृष्णाभावनामृत स्वीकार करते हैं, वे इस मनुष्य जीवन का उपयोग भगवान की भक्ति करने में तथा हरे कृष्णा मंत्र के कीर्तन में बिताते हैं।
इस प्रकार वे इसी जीवन में कृष्णलोक को प्राप्त होते हैं और वहां पर पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त होकर सतत आनंद का अनुभव करते हैं।

