स्वामी प्रभुपाद: मनुष्य स्वयं को वासुदेव के प्रति समर्पित करे
punjabkesari.in Sunday, Mar 23, 2025 - 07:56 AM (IST)

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कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना: प्रपद्यन्तेऽन्यदेवता:।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियता: स्वया॥7.20॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा के विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं। जो समस्त भौतिक कल्मष से मुक्त हो चुके हैं, वे भगवान की शरण ग्रहण करते हैं और उनकी भक्ति में तत्पर होते हैं। जब तक भौतिक कल्मष धुल नहीं जाता, तब तक वे स्वभावत: अभक्त रहते हैं, किन्तु जो भौतिक इच्छाओं के होते हुए भी भगवान की ओर उन्मुख होते हैं, वे बहिरंगा प्रकृति द्वारा आकृष्ट नहीं होते। चूंकि वे सही उद्देश्य की ओर अग्रसर होते हैं, अत: वे शीघ्र ही सारी भौतिक कामेच्छाओं से मुक्त हो जाते हैं।
श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि मनुष्य को चाहिए कि स्वयं को वासुदेव के प्रति समर्पित करें और उनकी पूजा करें, वह चाहे भौतिक इच्छाओं से रहित हो या भौतिक इच्छाओं से पूरित हो या भौतिक कल्मष से मुक्ति चाहता हो।
जैसा कि भागवत में (2.3.10) कहा गया है:
अकाम: सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधी:।
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम्॥
जो अल्पज्ञ हैं तथा जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक चेतना खो दी है, वे भौतिक इच्छाओं की अविलंब पूर्ति के लिए देवताओं की शरण में जाते हैं। सामान्यत: ऐसे लोग भगवान की शरण में नहीं जाते क्योंकि वे निम्नतर गुणों वाले (रजो तथा तमोगुणी) होते हैं, अत: वे विभिन्न देवताओं की पूजा करते हैं। वे पूजा के विधि-विधानों का पालन करने में ही प्रसन्न रहते हैं। देवताओं के पूजक छोटी-छोटी इच्छाओं के द्वारा प्रेरित होते हैं और यह नहीं जानते कि परम लक्ष्य तक किस प्रकार पहुंचा जाए किन्तु भगवद्भक्त कभी भी पथभ्रष्ट नहीं होता।
चूंकि वैदिक साहित्य में विभिन्न उद्देश्यों के लिए भिन्न-भिन्न देवताओं के पूजन का विधान है, अत: जो भगवद्भक्त नहीं हैं, वे सोचते हैं कि कुछ कार्यों के लिए देवता भगवान से श्रेष्ठ हैं किन्तु शुद्धभक्त जानता है कि भगवान कृष्ण ही सबके स्वामी हैं। चैतन्यचरितामृत (आदि 5.142) में कहा गया है- एकले ईश्वर कृष्ण, आर सब भृत्य - केवल भगवान कृष्ण ही स्वामी हैं और अन्य सब दास हैं। फलत: शुद्धभक्त कभी भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देवताओं के निकट नहीं जाता, वह तो परमेश्वर पर निर्भर रहता है और वे जो कुछ देते हैं, उसी से संतुष्ट रहता है।