स्वामी प्रभुपाद: हर जगह हैं परमेश्वर

punjabkesari.in Monday, Jul 22, 2024 - 08:43 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। 
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः:॥6.29॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : वास्तविक योगी समस्त जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है। नि:संदेह स्वरूपसिद्ध व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है।

PunjabKesari Swami Prabhupada

कृष्णभावनाभावित योगी पूर्ण द्रष्टा होता है क्योंकि वह परब्रह्म कृष्ण को हर प्राणी के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित देखता है। ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।

अपने परमात्मा रूप में भगवान एक कुत्ते तथा एक ब्राह्मण दोनों के हृदय में स्थित होते हैं। पूर्ण योगी जानता है कि भगवान नित्यरूप में दिव्य हैं और कुत्ते या ब्राह्मण में स्थित होने के कारण भौतिक रूप से प्रभावित नहीं होते। यही भगवान की परम निरपेक्षता है।

PunjabKesari Swami Prabhupada

यद्यपि आत्मा भी प्रत्येक हृदय में विद्यमान है, किन्तु वह एक साथ समस्त हृदयों में (सर्वव्यापी) नहीं है। आत्मा तथा परमात्मा का यही अंतर है। जो वास्तविक रूप में योगा यास करने वाला नहीं है, वह इसे स्पष्ट रूप में नहीं देखता।

एक कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कृष्ण को आस्तिक तथा नास्तिक दोनों में देख सकता है। स्मृति में इसकी पुष्टि इस प्रकार हुई है- आततत्वाच्च मातृत्वाच्च आत्मा हि परमो हरि:। भगवान सभी प्राणियों का स्रोत होने के कारण माता और पालनकत्र्ता के समान है। जिस प्रकार माता समस्त पुत्रों के प्रति समभाव रखती है, उसी प्रकार परम पिता (या माता) भी रखता है। फलस्वरूप परमात्मा प्रत्येक जीव में निवास करता है।
PunjabKesari Swami Prabhupada


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Prachi Sharma

Related News