स्वामी प्रभुपाद: इंद्रियों को जीतने वाला ही आत्म साक्षात्कार योगी कहलाता है

Tuesday, Mar 19, 2024 - 07:29 AM (IST)

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ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय:।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः।

भावार्थ
: वह व्यक्ति आत्म साक्षात्कार को प्राप्त तथा योगी कहलाता है, जो अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया संतुष्ट रहता है। ऐसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेंद्रिय कहलाता है। वह सभी वस्तुओं को, चाहे वे कंकड़ हों पत्थर हों या सोना, एक-समान देखता है।



कोई भी व्यक्ति अपनी दूषित इंद्रियों के द्वारा श्रीकृष्ण के नाम, रूप, गुण तथा उनकी लीलाओं की दिव्य प्रकृति को नहीं समझ सकता। भगवान की दिव्य सेवा से पूर्ति होने पर ही कोई उनके दिव्य नाम, रूप, गुण तथा लीलाओं को समझ सकता है।

यह भगवद्गीता कृष्ण भावनामृत का विज्ञान है। मात्र संसारी विद्वत्ता से कोई कृष्णभावनाभावित नहीं हो सकता। उसे विशुद्ध चेतना वाले व्यक्ति का सान्निध्य प्राप्त होने का सौभाग्य मिलना चाहिए। कृष्णभावनाभवित व्यक्ति को भागवत्कृपा से ज्ञान की अनुभूति होती है क्योंकि वह विशुद्ध भक्ति से तुष्ट रहता है।



अनुभूत ज्ञान से वह पूर्ण बनता है। आध्यात्मिक ज्ञान से मनुष्य अपने संकल्पों में दृढ़ रह सकता है, किन्तु मात्र शैक्षिक ज्ञान से वह बाह्य विरोधाभासों द्वारा मोहित और भ्रमित होता रहता है।

Prachi Sharma

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