स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रमुख स्वामी महाराज, 96वें जन्मदिवस पर विशेष

Tuesday, Dec 06, 2016 - 03:11 PM (IST)

हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तक अध्यात्मिक विभूति प्रमुख स्वामी जी महाराज
पिछले कई दशकों के बाद यह पहला अवसर है जब गांधी नगर गुजरात एवं नई दिल्ली के बाद अमरीका के न्यूजर्सी क्षेत्र में इससे भी विशाल अक्षरधाम की स्थापना करने वाले भगवद गुण सम्पन्न आध्यात्मिक विभूति प्रमुख स्वामी जी महाराज का जन्म दिवस उनकी भौतिक अनुपस्थिति में देश-विदेश में मनाया जा रहा है लेकिन शालीनता एवं निष्ठायुक्त समर्पण का जो संदेश उनके प्रवचनों से उदित हुआ वह समग्र विश्व में परिवर्तन ला सकता है।


13 अगस्त 2016 को देवलोक भ्रमण करने वाले प्रमुख स्वामी जी हिन्दू संस्कार, हिन्दू विचारधारा, हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तन में सदैव अग्रणी रहे। उनसे भेंट भी अद्भुत संयोग था। स्वतंत्रता दिवस की स्वर्ण जयंती  कांडला बंदरगाह पर मनाने के लिए 1996 में इफ्को के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेंद्र जाखड़ के सौजन्य से सुभाष गुप्ता व महेंद्र जीत बहाववालिया के साथ जब अहमदाबाद जाने का अवसर मिला तब रास्ते में अक्षरधाम दर्शन की व्यवस्था की गई थी।


तब दिल्ली से आश्रम एक्सप्रैस द्वारा अहमदाबाद पहुंचना संभव होता था वहां पहुंचने पर हिन्दी प्रभाग के अक्षर जीवन स्वामी अपने साथ हिम्मत नगर ले गए जहां साप्ताहिक भागवत कथा यज्ञ के संबंध में प्रमुख स्वामी जी पधारे हुए थे। जब परिचय करवाया गया तो उन्होंने सहज भाव से हाथ मिलाया और आशीर्वाद देने के बाद अक्षरजीवन स्वामी से कहा कि इनके आवास और भोजन का प्रबंध करो। वह क्षण सचमुच ही अविस्मरणीय बन गए। ऐसे महान संत का इतना स्नेहपूर्ण व्यवहार नि:संदेह चकित करने वाला था।


1100 मंदिरों के निर्माण द्वारा प्रमुख स्वामी जी ने सभी के लिए हिन्दुत्व के उदार मूल्य और वैश्विक विचार उद्घाटित किए। उनके दिव्य व्यक्तित्व व जीवन कार्य से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ। अमरीका में तृतीय गगनचुम्बी भव्य पंच शिखरीय मंदिर का निर्माण करके स्वामी श्री ने भारतीय संस्कृति और अक्षर पुरुषोत्तम उपासना का दुंदुभीनाद कर दिया। स्वामी श्री की साधना, स्फूर्ति, कांति एवं चुम्बकीय व्यक्तित्व देख कर सभी आश्चर्यचकित हो जाते।


स्वामी श्री ने कहा था कि मंदिर में संतों के सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है, दुख दूर होते हैं। प्रार्थना करने से शांति प्राप्त होती है। पारिवारिक एवं सामाजिक परेशानियों का निराकरण होता है। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होता है, शंकाएं दूर होती हैं। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने से चिंतन शांति प्राप्त होती है। शहर में सिनेमाघर, कैसीनो और शराब की दुकानों से क्या फायदा होता है। मंदिर तो ये सारी बुराइयां दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में सदियों से मंदिर परम्परा चली आ रही है। मंदिर के दर्शन मात्र से शांति की अनुभूति होती है।


उन्होंने कहा कि विज्ञान का विकास होने पर भी मनुष्य सुखी नहीं है। उसे शांति नहीं मिलती, क्योंकि भौतिकवाद बढ़ रहा है। भौतिक सुख के लिए आपस में कलह और अशांति होती है। हमारे आंतरिक दोष, एक-दूसरे के प्रति अहंमत्व और रागद्वेष के कारण समाज में बुरे कार्य भी होते हैं। दुनिया का बाह्य विकास हुआ है किन्तु आंतरिक विकास के लिए संतों का अनुसरण और सभी के लिए कल्याण की भावना रखना ही हमारा धर्म है। हमारा जीवन निर्व्यसनी एवं सदाचारी होना चाहिए।


भगवान स्वामी नारायण के पांचवें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी प्रमुख स्वामी जी महाराज का जन्म 1921 में चाणसद गांव में हुआ। इन्होंने मात्र 8 वर्ष विद्याभ्यास किया और 7 नवम्बर 1939 को गृह त्याग करके अहमदाबाद में शास्त्री जी महाराज के वरदहस्त से पार्षदी दीक्षा और 10 जनवरी 1940 को अक्षरदेहरी, गोंडल में भगवती दीक्षा प्राप्त की। इन्हें 23.1.1971 को संस्था का प्रमुख घोषित करते हुए ‘प्रमुख स्वामी जी महाराज’ का नाम दिया गया।


दूसरों की भलाई में अपना भला है। इस जीवन सूत्र के साथ लाखों लोगों को आत्मीय स्नेह से अध्यात्म पथ दिखाने वाले प्रमुख स्वामी जी महाराज एक विरल संत विभूति वात्सल्यमूर्ति संत थे, आप के सान्निध्य में शंकाओं का निवारण होता था, दुविधाएं दूर होती थी। आघात अदृश्य होते हैं, मन शांति की अनुभूति में सराबोर हो जाता था। परोपकारी एवं लोकहित के रक्षक करूणामूर्ति संत ने हजारों गांवों-शहरों को अपनी पुनीत चरण रज से पावन किया।

Advertising