ऐसे इंसानों का होता है स्वर्ग में WELCOME

Tuesday, Apr 02, 2019 - 07:05 PM (IST)

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सामर्थ्य का उपयोग दूसरों को हानि पहुंचाने में नहीं, बल्कि उनके मार्ग में आशा के दीप जलाने में होना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार कर्मों के फल निश्चित हैं। कर्म बीज है, जो बोया गया तो वृक्ष बनेगा। फूल व फल लगेंगे। अगर बीज को बोया ही नहीं जाए तो फल क्या होगा, समझा जा सकता है।

एक प्रसिद्ध संत जब स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचे तो चित्रगुप्त उन्हें रोकते हुए बोले, ‘‘अंदर जाने से पहले लेखा-जोखा देखना पड़ता है।’’

चित्रगुप्त की बात से नाराज संत ने कहा, ‘‘आप यह कैसा व्यवहार कर रहे हैं? बच्चे से लेकर वृद्ध तक सभी मुझे जानते हैं।

’’इस पर चित्रगुप्त बोले, ‘‘आपको कितने लोग जानते हैं, इसका लेखा-जोखा हमारे बहीखाते में नहीं होता। इसमें तो केवल कर्मों का लेखा-जोखा होता है।’’ 

इसके बाद वह बहीखाता लेकर संत के जीवन का पहला भाग देखने लगे। यह देखकर संत बोले, ‘‘आप मेरे जीवन का दूसरा भाग देखिए क्योंकि पहले हिस्से में मैंने लोगों की सेवा की, जबकि दूसरे हिस्से में मैंने जप-तप और ईश्वर की आराधना की है।’’ 

चित्रगुप्त ने उनके जीवन का दूसरा हिस्सा देखा तो वहां उन्हें कुछ भी नहीं मिला। सब कुछ कोरा था। वह फिर आरंभ से उनका लेखा-जोखा देखने लगे और बोले, ‘‘संत जी, आपका सोचना उलटा है। आपके अच्छे और पुण्य के कार्यों का लेखा-जोखा जीवन के आरंभ में है।’’

संत ने आश्चर्यचकित हो पूछा, ‘‘यह कैसे संभव है?’’ चित्रगुप्त बोले, ‘‘जीवन के पहले हिस्से में आपने मनुष्यों की सेवा की और इसी कारण आपको स्वर्ग में स्थान मिला है, जबकि ईश्वर की आराधना आपने अपनी शांति के लिए की, इसलिए वह पुण्य का कार्य नहीं है।’’ चित्रगुप्त की बात सुनकर संत समझ गए कि जीवन में जप-तप से बढ़कर कर्म है।

मनुष्य को हमेशा सद्कर्म करने चाहिएं। बिना सद्कर्म के कोई गति नहीं है। अच्छे काम करोगे तो आगे भी अच्छी गति मिलेगी। आज का इंसान अपने दुख से ज्यादा दुखी नहीं होता लेकिन सामने वाले के सुख से दुखी जरूर हो जाता है। हमें अपने कर्मों पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। 

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Jyoti

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