ऐसे लोग होते हैं गीता के  सच्चे उपासक

Saturday, Jul 04, 2020 - 03:24 PM (IST)

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जाने-माने इंजीनियर अमृतलाल ठक्कर मुम्बई नगर निगम की सेवा में कार्यरत थे। अधिकारी के नाते उन्हें कुछ दिन मेहतरों की बस्ती में हो रहे निर्माण कार्य की देखभाल का अवसर मिला। उन्होंने उन गरीब तथा वंचित लोगों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा तो एक रात वह सो नहीं पाए। 

उनका मन उन्हें धिक्कारने लगा कि वह सुविधापूर्ण अच्छे मकान में रहते हैं, अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छा भोजन करते हैं जबकि ये गरीब रात-दिन मेहनत करने के बावजूद दो जून की रोटी भी नहीं जुटा पाते।

सवेरे गीता का पाठ करने बैठे तो भगवान श्रीकृष्ण की ‘सभी प्राणियों में समदृष्टि रखो’ वाणी ने उनका हृदय झकझोर डाला। अगले ही दिन उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया तथा गरीबों व वंचितों की सेवा का संकल्प लेकर रचनात्मक सेवा कार्यों में जुट गए। 

उनकी सेवा भावना पर मुग्ध होकर आचार्य विनोबा भावे ने उनसे कहा, ‘‘अमृत भाई तुम बचपन से गीता पाठ करते थे, श्री कृष्ण की पूजा करते थे। किंतु अब तो तुमने अपना जीवन गीतामय बना लिया है। वास्तव में जो सेवा के लिए हर क्षण तत्पर रहता है वही गीता का सच्चा उपासक है।’’    
 

Jyoti

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