Success में कभी न बनने दें अपनी किसी भी कमजोरी को बाधक

Tuesday, Mar 17, 2020 - 10:52 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सैमुअल और नैन्सी अमरीका के ओहियो शहर में रहते थे। दोनों की माली हालत ठीक नहीं थी। सैमुअल दुकान पर काम करते और तख्ता बनाते तो नैन्सी ट्यूशन पढ़ाकर थोड़ी-बहुत आमदनी कर लेती। इस तरह अभावों के बीच भी जैसे-तैसे दोनों की गृहस्थी चल रही थी। नैन्सी अपने छोटे बेटे से कुछ ज्यादा ही प्यार करती और उसे अल कहकर बुलाती। वह बहरेपन की समस्या से ग्रसित थे लेकिन नैन्सी ने तय कर रखा था कि अल के व्यक्तित्व विकास को वह किसी भी रूप में बाधित नहीं होने देगी। जब अल 7 वर्ष का हो गया तो नैन्सी ने उसे पोर्ट हरान मिशिगन नामक एक स्कूल में पढ़ने भेजा। 3 महीने में ही स्कूल टीचर ने अल से कहा कि वह कक्षा में पढ़ने लायक नहीं है।

दूसरे दिन सैमुअल और नैन्सी शिक्षक से मिले लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद नैन्सी ने अल को घर पर ही पढ़ाने का निर्णय लिया। नैन्सी की लगन, समर्पण और प्यार का असर यह हुआ कि लड़के का मन पढ़ाई में लग गया। बच्चे की पढ़ाई में रुचि देख मां मन ही मन खुश होती। फिर तो अल जैसी किताब पढ़ने की बात करता, मां वही किताब लाकर उसे देती।
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12 वर्ष की उम्र में ही अल ने न केवल शेक्सपीयर, डिकन्स की पुस्तकों के साथ इंगलैंड का इतिहास पढ़ डाला बल्कि मां के सिर से आर्थिक बोझ उतारने के लिए रोड पर फल, कैंडी और अखबार भी बेचने लगा। बाद में कैमिस्ट्री और मैकेनिकल क्षेत्र में रुचि जागृत होने पर उसने एक से बढ़कर एक आविष्कार करके अपने नाम 1093 आविष्कारों का पेटैंट करवाया। शहरों को जगमगाने वाले बिजली के बल्ब इसी बालक की देन हैं। यह बालक था थॉमस एडिसन, जिसके बहरेपन को भी मां की ममता ने शिकस्त दी और इसे उसकी प्रगति में बाधक नहीं बनने दिया।

Lata

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