यूं बना नाहन शहर नगीना, जानिए इसकी आन-बान-शान की गाथा

punjabkesari.in Monday, Feb 27, 2017 - 11:27 AM (IST)

रियासत सिरमौर की राजधानी जिला मुख्यालय नाहन अपने सुनहरे कल की बदौलत नगीना बना। 1621 में शहर बसना शुरू हुआ। यहां चंद्रवंशी राजाओं महाराजाओं की 42 पीढिय़ों ने राज किया। यहां की भव्य इमारतें जो रिकार्ड में 100 साल से भी पहले दर्ज हैं। इन इमारतों को स्थानीय कारीगरों ने अपने हुनर से तराशा है। कुछ इमारतों में विक्टोरिया जमाने की स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है। इन इमारतों को रियासत काल में एक्सियन रहे डा. पीयर सैल ने डिजाइन किया। इतिहास के पन्नों के अनुसार इन इमारतों में से ज्यादातर महाराजा शमशेर प्रकाश के जमाने में बनीं जो अपने काल में एक दूरदर्शी व लोकप्रिय शासक थे। केंद्र सरकार की एजैंसी इंटैग की रिपोर्ट में 100 साल से ज्यादा पुरानी ये इमारतें हैरीटेज की फेहरिस्त में शुमार हैं जो चंद्रवंशी महाराजाओं की आन-बान-शान की गाथा सुना रही है। सुनहरे अतीत की याद दिलाती है। आज भी शहर का भाईचारा बेमिसाल है। यहां सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। देश में भले ही जाति और धर्म के आधार पर हालात खराब हुए हैं लेकिन यहां के भाईचारे को कभी आंच तक नहीं आई।


श्री गुरु गोबिंद सिंह पधारे नाहन
रियासत काल में सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी राजा मेधनी प्रकाश के बुलावे पर रियासत में पहुंचे। गढ़वाल के राजा के साथ विवाद को निपटाने के लिए राजा मेधनी प्रकाश ने श्री गुरु गोबिंद सिंह को आमंत्रित किया। रियासत की सीमा पर टोका साहिब में लाव-लश्कर के साथ राजा ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की अगवानी की। गुरु जी ने यहां 8 माह से ज्यादा समय बिताया। गुरुद्वारा श्री दशमेश अस्थान में आज भी वह थड़ा मौजूद है जहां गुरु गोबिंद सिंह जी संगतों को दर्शन देते थे। गुरु जी द्वारा राजा को भेंट स्वरूप दी गई तलवार आज भी यहां राजवंश के लोग सिख संगतों के लिए दर्शन हेतु लाते हैं। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के यहां अपने पवित्र कदम रखने से शहर को आज भी एक अलग मुकाम हासिल है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गुरु जी के ठहरने के स्थान पर एक भव्य गुरुद्वारे का निर्माण किया है जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं।


बाबा बनवारी दास की सलाह से शहर वजूद में आया
इतिहास के अनुसार बाबा बनवारी दास को शहर का संस्थापक माना जाता है। कहते हैं जब 1621 में सूर्यवंशी शाही परिवार के लोगों ने सिरमौरी ताल में राजधानी ध्वस्त होने के बाद यहां की ओर कूच किया तो घने जंगल में बाबा बनवारी दास तपस्या में लीन मिले। शाही परिवार के लोगों ने सिरमौरी ताल में जो हुआ वह सब बाबा बनवारी दास को बताया। कहते हैं कि बाबा जहां तपस्या करते थे उनके आसपास अक्सर शेर भी घूमा करते थे जिन्हें बाबा ने पाल रखा था। इतिहास के अनुसार बाबा बनवारी दास ने शाही परिवार के लोगों को इसी स्थल पर जहां बाबा तपस्या करते थे इसी क्षेत्र में शहर बसाने की सलाह दी। तब 1621 में शहर की बुनियाद पड़ी। शहर के सबसे प्राचीन मंदिर भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर की स्थापना भी बाबा बनवारी दास ने की। यह वही स्थल है जहां बाबा घोर तपस्या किया करते थे। आज भी मंदिर के गर्भगृह में बाबा द्वारा पूजा में प्रयोग की जाने वाली सामग्री रखी गई है। शहर के नाहन नाम के पीछे भी एक किंवदंती बताई जाती है। बाबा बनवारी दास द्वारा पाले गए शेर जब दहाड़ते थे तो उनकी आवाज को नाहर कहा जाता था। नाहर शब्द बाद में बिगड़ कर नाहन बना और जो नगीना भी कहलाया।


रॉयल पैलेस
सिरमौरी हुक्मरानों की राजधानी रहे शहर में रॉयल पैलेस शानदार इमारत है। 1621 में जब शहर बसना शुरू हुआ तो महाराजा कर्म प्रकाश ने पैलेस का निर्माण शुरू किया। महाराजा फतेह प्रकाश ने पैलेस के विस्तार में अहम भूमिका निभाई। पैलेस से जैसलमेर से आए चंद्रवंशी राजाओं की 42 पीढिय़ों ने शासन किया। इसमें सिरमौरी ताल राजबन का दौर भी शामिल है। जानकारी के अनुसार सिरमौर पैलेस में महाराजा कर्म प्रकाश से लेकर अंतिम शासक महाराजा राजेन्द्र प्रकाश ने निवास किया। 
वर्तमान में सिरमौरी हुक्मरानों की शान बान रहे इस पैलेस के रख-रखाव में कानूनी लड़ाई बाधा बनी, पैलेस का बहुत-सा हिस्सा खस्ताहाल हो चुका है। हाल ही में राजमहल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग भी सरकार तक पहुंची है।


ऐतिहासिक फाऊंडरी का प्रवेशद्वार
नाहन फाऊंडरी की स्थापना महाराजा शमशेर प्रकाश ने 1875 में की थी। जैसे-जैसे स्थिति बदली फाऊंडरी का विस्तार किया गया। यहां की बनी गन्ना पीडऩे की मशीनें जो सुल्तान ब्रांड के नाम से जानी जाती थीं खाड़ी देशों तक इनकी आपूर्ति होती थी। देश भर में नाहन फाऊंडरी का डंका बजता था। यहां बनी अनारकली ब्रांड की कास्ट आयरन की ग्रिल व अन्य साजो सामान पूरे देश में मशहूर था लेकिन सरकार की गलत नीतियों के चलते यह ऐतिहासिक कारखाना खत्म हुआ। आज इसके अवशेष ही बचे हैं। इसका ऐतिहासिक प्रवेश द्वार अपनी एक अलग पहचान रखता है जिसका संरक्षण होना चाहिए।


लार्ड लिटन आए तो बना दिल्ली गेट
शहर के प्रवेश द्वार पर महाराजा सुरेन्द्र प्रकाश ने अपने शासन में उस वक्त के वायसराय लार्ड लिटन के आगमन पर उनकी शान में लिटन मैमोरियल दिल्ली गेट का निर्माण करवाया। यह इमारत हजारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। चौगान के किनारे 100 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी शान से खड़ी यह इमारत शाही जमाने की याद दिलाती है। शुरूआत में दिल्ली दरवाजे के ऊपर लगी घड़ी नहीं थी। दिल्ली गेट के ऊपर लगी घड़ी महाराजा अमर प्रकाश के जमाने में स्थापित की गई। दिल्ली गेट की ऐतिहासिक इमारत का रख-रखाव नगर परिषद के जिम्मे है। नगर परिषद केवल रंग-रोगन करके ही अपनी जिम्मेदारी निभा रही है जबकि इस इमारत के वजूद को बचाने के लिए सरकार और प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। 


जिस तरह से इस इमारत के पास से प्रतिदिन सैंकड़ों वाहन गुजर रहे हैं उसे देखते हुए उसका संरक्षण बहुत जरूरी है। हैरीटेज होने के बाद भी इस इमारत के वास्तविक स्वरूप के साथ समय-समय छेडख़ानी होती रही है।    


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