अरावली की घाटी में वीरता की यह कहानी आज भी देशभक्ति का उदाहरण बनकर बिखरी हुई है

Friday, Feb 10, 2023 - 08:01 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Story of Maharana Pratap: हल्दी घाटी युद्ध के समय एक बार महाराणा प्रताप एक पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे। बस्ती के भील बारी-बारी से इनके लिए भोजन पहुंचाया करते थे। एक दिन ‘दुद्धा’ के घर की बारी थी, लेकिन उसके घर में अन्न का एक भी दाना नहीं था। उसकी मां पड़ोस से आटा मांग कर ले आई और रोटियां बनाकर दुद्धा को देते हुए बोली, ‘यह पोटली राणा जी को दे आ।’ दुद्धा ने खुशी-खुशी पोटली उठाई और पहाड़ी पर दौड़ते-भागते रास्ता नापने लगा।



1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

घेराबंदी किए बैठे अकबर के सैनिकों पर दुद्धा की नजर पड़ी। मुगल सैनिक उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागने लगे। दौड़ते-दौड़ते वह एक चट्टान से टकराया और गिर पड़ा। एक सैनिक की तलवार से बालक दुद्धा की नन्ही कलाई पर गहरा घाव लग गया। फिर भी नीचे गिर पड़ी रोटी की पोटली उसने दूसरे हाथ से उठाई और सरपट दौड़ने लगा। बस, उसे तो एक ही धुन थी कि कैसे भी करके महाराणा प्रताप तक रोटियां पहुंचानी हैं। रक्त बहुत बह चुका था। अब दुद्धा की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। जिस गुफा में महाराणा प्रताप रुके थे, वहां पहुंच कर दुद्धा चकराकर गिर पड़ा। उसने एक बार और शक्ति बटोरी और आवाज लगाई, ‘राणाजी, ये रोटियां मां ने भेजी हैं।’



फौलादी तन और अटूट प्रण वाले महाराणा प्रताप की आंखों से, यह दृश्य देखकर शोक का झरना फूट पड़ा। उन्होंने कहा, ‘बेटा, तुम्हें इतने बड़े संकट में पड़ने की क्या जरूरत थी?’

वीर दुद्धा ने कहा, ‘मां कहती हैं, आप चाहते तो अकबर से समझौता कर आराम से रह सकते थे, पर आपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कितना बड़ा त्याग किया, उसके आगे मेरा त्याग तो कुछ नहीं है।’



इतना कह कर दुद्धा वीर गति को प्राप्त हो गया। अरावली की घाटी में वीरता की यह कहानी आज भी देशभक्ति का उदाहरण बनकर बिखरी हुई है।

 

 

Niyati Bhandari

Advertising