Story of Durga Bhabhi: इतिहास में कहीं गुम होकर रह गई है दुर्गा भाभी के साहस की कहानी
punjabkesari.in Saturday, Oct 21, 2023 - 07:39 AM (IST)

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Story about Durga Bhabhi: भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष में नारी शक्ति का विशेष योगदान रहा है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेजों से लड़ने में सहयोग किया। इन महिलाओं में क्रांतिकारी दुर्गावती भी शामिल हैं, जिन्हें सभी ‘दुर्गा भाभी’ और भारत की ‘आयरन लेडी’ के नाम से जानते हैं। ‘दुर्गा भाभी’ भले ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की तरह फांसी पर न चढ़ी हों लेकिन वह कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। अंग्रेजों से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को टीका लगाकर विजय पथ पर वह भेजती थीं।
वह भगत सिंह के साथ ट्रेन यात्रा में जाने के लिए जानी जाती हैं, जब भगत सिंह ने सॉन्डर्स की हत्या के बाद भेष बदल लिया था और ‘दुर्गा भाभी’ ने ही उन्हें अंग्रेजों की पकड़ से दूर जाने में मदद की थी। चूंकि वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं, इसलिए अन्य सदस्य उन्हें ‘दुर्गा भाभी’ कहकर बुलाते थे और बाद में वह इसी नाम से मशहूर हो गई।
‘दुर्गा भाभी’ का जन्म 7 अक्तूबर, 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर ग्राम, अब कौशाम्बी जिला, में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। 10 वर्ष की अल्प आयु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया। भगवती चरण बोहरा अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे और उनकी पत्नी ‘दुर्गा भाभी’ ने भी इस कार्य में पूरा सहयोग किया। इनका घर क्रांतिकारियों का आश्रयस्थल था।
वह आजादी के संघर्ष में तब आगे आई, जब 1927 में लाला लाजपतराय जी की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में बुलाई गई बैठक की अध्यक्षता उन्होंने की थी। सांडर्स की हत्या के 2 दिन बाद राजगुरु ने ‘दुर्गा भाभी’ से मदद मांगी और वह तैयार हो गई। हर तरफ पुलिस का पहरा था, ऐसे में उन्होंने वेश बदल कर भगत सिंह की पत्नी बन उन्हें लाहौर से निकालने में कलकत्ता-मेल से यात्रा कर मदद की। सूट-बूट और हैट पहने हुए भगत सिंह, उनके साथ सामान उठाए नौकर के रूप में राजगुरु और थोड़ा पीछे अपने बच्चे शचीन्द्र के साथ आती दुर्गा, बिल्कुल एक भारतीय पैसे वाले परिवार का अभिनय करते हुए लाहौर रेलवे स्टेशन पहुंचे। दो फर्स्ट क्लास के अपार्टमेंट की टिकटें लेकर भगत सिंह और दुर्गा, मियां-बीवी की तरह बैठ गए और सर्वेन्ट्स के अपार्टमेंट में राजगुरु बैठ गए। इसी ट्रेन में एक डिब्बे में चंद्रशेखर आजाद भी थे, जो तीर्थयात्रियों के ग्रुप में शामिल होकर रामायण की चौपाइयां गाते हुए सफर कर रहे थे।
भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त जब केंद्रीय एसैंबली में बम फैंकने जाने लगे तो ‘दुर्गा भाभी’ व सुशीला मोहन (दुर्गा भाभी की ननद) ने हाथ काट कर अपने रक्त से दोनों लोगों को तिलक लगाकर विदा किया था। इनके पति भगवतीचरण बोहरा ने लॉर्ड इरविन की ट्रेन पर बम फैंक कर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत सभी क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना बनाई और इसके लिए वह रावी नदी के तट पर लाहौर में बम का परीक्षण कर रहे थे।
28 मई, 1930 का दिन था कि अचानक बम फट गया और भगवतीचरण जी शहीद हो गए। ‘दुर्गा भाभी’ को बड़ा झटका लगा लेकिन वह आजादी के प्रयास में जुटी रहीं और अंग्रेजों ने उन्हें कुछ साल जेल में भी बंद रखा। आजादी के बाद उन्होंने अध्यापन के कार्य में खुद को व्यस्त कर लिया और गुमनामी में रहना शुरू कर दिया। मीडिया, सत्ताधीशों और लोगों को दुर्गा भाभी की आखिरी खबर 15 अक्तूबर, 1999 के दिन मिली, जब गाजियाबाद के एक फ्लेट में उनकी मौत हो गई। तब वह 92 साल की थीं। शायद उनके पति के विचारों का ही उन पर प्रभाव था कि पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले ही और इतने साहस के साथ गुजार दी और न जाने कितनों को साहस से जीने की प्रेरणा दी।