अजब-गजब: सिक्के या नोट नहीं बल्कि इस जगह use किए जाते हैं पत्थर

Sunday, Aug 27, 2023 - 08:25 AM (IST)

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Stone Currency: इंसान सदियों से करेंसी यानी मुद्रा का इस्तेमाल खरीद-फरोत और कारोबार के लिए करता आया है। एक दौर था जब महंगे रत्नों में कारोबार हुआ करता था। लोग मोती, कौड़ियां और दूसरे रत्न देकर चीजें खरीदा करते थे। फिर सिक्कों का चलन शुरू हुआ। सोने-चांदी, तांबे, कांसे और अल्यूमिनियम के सिक्के तमाम साम्राज्यों और सभ्यताओं में ढाले गए।

जब मुगल बादशाह हुमायूं की जान एक भिश्ती (पानी पिलाने वाला) ने बचाई, तो हुमायूं ने उसे एक दिन का बादशाह बना दिया। तब भिश्ती ने हिंदुस्तान में चमड़े के सिक्के चलवा दिए थे। सिक्कों के साथ ही नोटों का चलन भी शुरू हुआ। सबसे पहले चीन में करेंसी नोट छापे गए थे लेकिन, औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप की औपनिवेशिक ताकतों ने करेंसी नोटों के चलन को खूब बढ़ावा दिया। पर, क्या कभी आपने करेंसी के रूप में बड़े-बड़े पत्थरों के इस्तेमाल की बात सुनी है ?



नहीं न ! तो, चलिए आज आपको एक ऐसी जगह की सैर पर ले चलते हैं, जहां की करेंसी पत्थर हैं और सदियों से ऐसा होता आ रहा है। इसके लिए आप को प्रशांत महासागर के माइक्रोनेशिया इलाके में जाना पड़ेगा। यहां पर बहुत छोटे-छोटे द्वीप आबाद हैं। इन्हीं में से एक द्वीप है यप। यह छोटी सी जगह है, जहां कुल मिलाकर 11,000 लोग रहते हैं। मगर इसकी शोहरत ऐसी है कि 11वीं सदी में मिस्र के एक राजा के हवाले से यप का जिक्र मिलता है।

इसी तरह मशहूर यूरोपीय यात्री मार्को पोलो ने 13वीं सदी में लिखी अपनी एक किताब में इसका जिक्र किया है। इन दोनों ही मिसालों में कहीं भी यप का नाम नहीं लिखा है। मगर दोनों साहित्यों में एक ऐसी जगह का जिक्र है, जहां की करेंसी पत्थर हुआ करती थी। जब आप यप पहुंचेंगे, तो आपका सामना घने जंगलों, दलदली बागों और बेहद पुराने दौर के हालात से होगा। दिन भर में सिर्फ एक लाइट है, जो यप के छोटे से हवाई अड्डे पर उतरती है। हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही आप को कतार से लगे छोटे-बड़े तराशे हुए पत्थर दिखेंगे। इनके बीच में छेद होता है, ताकि इन्हें कहीं लाने-ले जाने में सहूलत हो। पूरे यप द्वीप पर ऐसे छोटे-बड़े पत्थर जहां-तहां पड़े दिख जाते हैं। यप द्वीप की मिट्टी दलदली है। यहां चट्टानें नहीं हैं।

फिर भी पत्थर की इस करेंसी का चलन यहां सदियों से है। किसी को नहीं पता कि इसकी शुरुआत कब हुई थी। लेकिन, स्थानीय लोग बताते हैं कि आज से सैकड़ों साल पहले यप के बाशिंदे डोंगियों में बैठकर 400 किलोमीटर दूर स्थित पलाऊ द्वीप जाया करते थे। वहां से वे चट्टानें काटकर ये पत्थर तराशा करते थे। फिर उन्हें नावों में लाद कर यहां यप लाया जाता था। इन्हें राई कहा जाता है। पिछली कई सदियों से इन पत्थरों को करेंसी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है।



How was business in this currency कैसे होता था इस करेंसी में व्यापार
पहले यप के आदिवासी इन पत्थरों को बड़े बेढंगे तरीके से काटकर यहां लाते थे। फिर औजारों के विकास से पत्थरों को सुघड़ तरीके से तराश कर यहां लाया जाने लगा। 19वीं सदी में जब यप पर स्पेन का कब्जा हो गया, तब भी यहां पर पत्थरों से कारोबार थमा नहीं। जब पलाऊ जाने वाले नाविक अपने साथ तराशे हुए पत्थर लाते थे तो वे इन्हें यप के बड़े सरदारों को सौंप देते थे। सरदार इन पत्थरों को अपना या अपने परिवार के किसी सदस्य का नाम देकर लाने वाले को सौंप देते थे। पांच में से दो पत्थर ये सरदार खुद रखते थे और तीन पत्थर लाने वाले को दे दिए जाते थे।

शुरुआत में पत्थरों की कीमत सीपियों की संख्यां से तय होती थी क्योंकि पत्थरों से पहले सीपी को करेंसी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। जैसे एक पत्थर के बदले 50 सीपियां दी जाती थीं। आज फुटकर करेंसी के तौर पर यप में अमरीकी डॉलर का इस्तेमाल होता है। लेकिन, इन पत्थरों की यप समाज में अपनी अहमियत बरकरार है। आज हर पत्थर का इतिहास है। उससे जुड़ा कोई न कोई किस्सा है। किसी भी परिवार के पास ये करेंसी होना बहुत सम्मान की बात मानी जाती है।

How is the price of these stones determined कैसे तय होती है इन पत्थरों की कीमत
आज इन पत्थरों की करेंसी का इस्तेमाल रोजाना के लेन-देन में नहीं होता बल्कि समाज में इसे कभी माफीनामे और कभी शादी-संबंध को मजबूत करने के लिए दिया जाता है। पत्थर के इन सिक्कों का आकार 7 सैंटीमीटर से लेकर 3.6 मीटर तक होता है। इन सिक्कों का मोल इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस काम में इस्तेमाल होते हैं और किसको दिए जाते हैं। कबीले के सरदार, आने वाली नस्लों को पत्थर के हर सिक्के का इतिहास बताते हैं। इस तरह से पिछले 200 सालों से पत्थर की इस करेंसी का इतिहास आने वाली नस्लों को जबानी याद कराया जा रहा है।



अब पत्थर के इन सिक्कों को एक यूजियम में रखा गया है, जहां टूटे-फूटे पत्थरों की इस करेंसी का इतिहास भी दर्ज किया गया है- ये किस गांव के हैं, इनका किस परिवार से नाता है। अब भी पत्थर के कुछ नए सिक्के तराशे जा रहे हैं। मगर अब इनकी संख्या बहुत कम हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि इन बहुमूल्य सिक्कों को चुराए जाने का डर नहीं है। ये इतने बड़े हैं और सबको इनके बारे में मालूम है तो कोई इन्हें चुराकर ले जा भी कहां सकता है। आज पत्थर की यह करेंसी पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के तौर पर नई नस्ल को सौंपी जा रही है।

 

Niyati Bhandari

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