अगहन महीने का हुआ प्रारंभ: ये 1 एक मंत्र दिलाएगा पूरे माह का फल

Wednesday, Nov 13, 2019 - 09:41 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जैसे कि सब जानते हैं कि बीते दिन यानि 12 नवंबर को कार्तिक माह के आख़िरी दिन के साथ इस महीना का समापन हो गया। जिसके ठीक अगले दिन यानि आज 13 नवंबर से मार्गशीर्ष महीने का प्रारंभ हो गया। हिंदू पंचाग के अनुसार इसे साल का नौवां महीना माना जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसे अग्रहायण एवं अगहन के महीने के नाम से भी जाना जाता है। यूं तो हर महीने को हिंदू धर्म में खास बताया गया परंतु मार्गशीर्ष को अन्य कुछ के तुलना में अधिक खास व पावन माना जाता है। शास्त्रों व ग्रंथों के अनुसार इस मास का सीधा-सीधा संबंध सतयुग से है क्योंकि ऐसी मान्यता है मार्गशीर्ष के माह से ही सतयुग का आंरभ हुआ था। इसके अलावा श्रीमद्भागवत गीता में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं, समस्त 12 माह में मार्गशीर्ष मैं स्वयं हूं। साथ ही उन्होंने इसमें पालन किए जाने वाले कुछ नियम भी बताए गए। जिसका पालन हिंदू धर्म से जुड़े हर व्यक्ति को करना चाहिए। तो आइए जानते हैं इससे जुड़े कुछ खास नियम व बातें-

हिंदू धर्म के अनेकों पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कश्यप ऋषि ने ही मार्गशीर्ष के महीने में ही कश्मीर की रचना की थी। कार्तिक माह की तरह ये माह भी श्री हरि को अधिक प्रिय है। इस दौरान जप, तप और ध्यान करना फलदायी माना जाता है। इसके अलावा मार्गशीर्ष माह में पावन नदियों में स्नान करन से जातक की मनोवांछित कामनाएं पूरी होने लगती हैं। साथ ही साथ मार्गशीर्ष (अगहन) महीने में मांगलिक कार्य करने से शुभ फल मिलता है। संतान सुख की कामना रखने वाले लोग भगवान श्रीकृष्ण की उपासना के साथ-साथ चन्द्रमा की पूजा करें। इससे अमृत तत्व की प्राप्ति होती है।

कहा जाता है मार्गशीर्ष (अगहन) के महीने में तेल की मालिश बहुत उत्तम मानी जाती है। साथ ही साथ इस माह के साथ स्निग्ध चीज़ों का सेवन आरम्भ हो जाता है। अगहन मास में जीरे का सेवन नहीं करना चाहिए। मोटे वस्त्रों का उपयोग आरम्भ कर देना चाहिए। नित्य श्रीकृष्ण की पूजा के बाद या पहले श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा तुलसी के पत्तों का भोग लगाएं और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें तथा प्रयास करें कि पूरे मार्गशीर्ष महीने में निम्न मंत्र का जप करें।

 "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"

Jyoti

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