श्रीमद्भगवद्गीता: अनेक जन्म-जन्मांतर के बाद जिसे ज्ञान होता है, वह करता है ये काम

Thursday, Dec 14, 2017 - 09:56 AM (IST)

आत्म साक्षात्कार का चरम लक्ष्य


श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 7 भगवद्ज्ञान 


बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते। वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ:॥ 19॥

 

तात्पर्य
अनेक जन्म-जन्मांतर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है। ऐसा महात्मा अत्यंत दुर्लभ होता है। भक्ति या दिव्य अनुष्ठानों को करता हुआ जीव अनेक जन्मों के पश्चात इस दिव्यज्ञान को प्राप्त कर सकता है कि आत्म-साक्षात्कार का चरम लक्ष्य श्रीभगवान हैं। आत्म-साक्षात्कार के प्रारंभ में जब मनुष्य भौतिकता को परित्याग करने का प्रयत्न करता है, तब र्निवमेशेषवाद की ओर उसका झुकाव हो सकता है, किंतु आगे बढऩे पर वह यह समझ पाता है कि आध्यात्मिक जीवन में भी कार्य हैं और इन्हीं से भक्ति का विधान होता है।


इसकी अनुभूति होने पर वह भगवान के प्रति आसक्त हो जाता है और उनकी शरण ग्रहण कर लेता है। इस अवसर पर वह समझ सकता है कि श्रीकृष्ण की कृपा ही सर्वस्व है, वे ही सब कारणों के कारण हैं और यह जगत् उनसे स्वतंत्र नहीं है। वह इस भौतिक जगत को आध्यात्मिक विभिन्नताओं का विकृत प्रतिबिम्ब मानता है और अनुभव करता है कि प्रत्येक वस्तु का परमेश्वर कृष्ण से संबंध है। 


इस प्रकार वह प्रत्येक वस्तु को वासुदेव श्रीकृष्ण से संबंधित समझता है। इस प्रकार की वासुदेवमयी व्यापक दृष्टि होने पर भगवान कृष्ण को परमलक्ष्य मानकर शरणागति प्राप्त होती है। ऐसे शरणागत महात्मा दुर्लभ हैं।


भगवान वासुदेव या भगवान ही समस्त पदार्थों में मूल सत्ता हैं। इस देह में बोलने, देखने, सुनने तथा सोचने आदि की शक्तियां हैं किंतु यदि वे भगवान से संबंधित न हों तो सभी व्यर्थ हैं। वासुदेव सर्वव्यापी हैं और प्रत्येक वस्तु वासुदेव है। 

(क्रमश:)

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