श्रीमद्भगवद्गीता: हृदय में स्थित परमात्मा को मिलने का मार्ग

Saturday, Mar 31, 2018 - 09:32 AM (IST)

इंद्रियों को विषयों से हटाना

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति 


सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च। मूध्न्र्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम्।। 12।।


अनुवाद एवं तात्पर्य : समस्त इंद्रिय क्रियाओं से विरक्ति को योग की स्थिति (योगधारणा) कहा जाता है। इन्द्रियों के समस्त द्वारों को बंद करना तथा मन को हृदय में और प्राण-वायु को सिर पर केंद्रित करके मनुष्य अपने को योग में स्थापित करता है। इस श्लोक में बताई गई विधि से योगाभ्यास के लिए सबसे पहले इद्रिंय भोग के सारे द्वार बंद करने होते हैं। यह प्रत्याहार अथवा इंद्रियविषयों से इंद्रियों को हटाना कहलाता है। इसमें ज्ञानेन्द्रियों-नेत्र, कान, नाक, जीभ तथा स्पर्श को पूर्णत: वश में करके उन्हें इंद्रियतृप्ति में लिप्त होने नहीं दिया जाता। इस प्रकार मन हृदय में स्थित परमात्मा पर केंद्रित होता है और प्राण-वायु को सिर के ऊपर तक चढ़ाया जाता है। किंतु जैसा कि पहले कहा जा चुका है अब यह विधि व्यावहारिक नहीं है। सबसे उत्तम विधि तो कृष्णभावनामृत है। यदि कोई भक्ति में अपने मन को कृष्ण में स्थिर करने में समर्थ होता है तो उसके लिए अविचलित दिव्य समाधि में बने रहना सुगम हो जाता है।     


(क्रमश:)

Niyati Bhandari

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