श्रीमद्भगवद्गीता: कृष्ण परम प्रमाण हैं

Saturday, Oct 29, 2022 - 12:29 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए उपदेश तो हैं ही, परंतु साथ ही साथ ऐसी भी बहुत सी जानकारी वर्णित है। आज हम आपको श्रीमद्भगवद्गीता के ऐसे ही श्लोक के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें श्री कृष्ण को परम प्रमाण माना गया है। अब ये परम प्रमाण से क्या तात्पर्य है, आइए जानते हैं- 

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
स्वामी प्रभुपाद
अर्जुन उवाच

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत:।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥४॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : अर्जुन ने कहा : सूर्यदेव विवस्वान् आप से पहले हो चुके (ज्येष्ठ) हैं, तो फिर मैं कैसे समझूं कि प्रारंभ में भी आपने उन्हें इस विद्या का उपदेश दिया था। जब अर्जुन भगवान का माना हुआ भक्त है तो फिर उसे श्री कृष्ण के वचनों पर विश्वास क्यों नहीं हो रहा था? 

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तथ्य यह है कि अर्जुन अपने लिए यह जिज्ञासा नहीं कर रहा, अपितु यह जिज्ञासा उन सभी के लिए है, जो भगवान में विश्वास नहीं करते अथवा उन असुरों के लिए है, जिन्हें यह विचार पसंद नहीं है कि श्री कृष्ण को भगवान माना जाए।

उन्हीं के लिए अर्जुन यह बात इस तरह पूछ रहा है, मानो वह स्वयं भगवान या कृष्ण से अवगत न हो। जैसा कि दसवें अध्याय में स्पष्ट हो जाएगा, अर्जुन भली-भांति जानता था कि श्री कृष्ण भगवान हैं और वे प्रत्येक वस्तु के मूलस्रोत हैं तथा ब्रह्म की चरमसीमा हैं। नि:संदेह कृष्ण इस पृथ्वी पर देवकी के पुत्र रूप में भी अवतीर्ण हुए। सामान्य व्यक्ति के लिए यह समझ पाना अत्यंत कठिन है कि श्री कृष्ण किस प्रकार उसी शाश्वत आदिपुरुष श्री भगवान के रूप में बने रहे।

अत: इस बात को स्पष्ट करने के लिए ही अर्जुन ने कृष्ण से यह प्रश्र पूछा, ताकि वे ही प्रामाणिक रूप में बताएं। कृष्ण परम प्रमाण हैं, यह तथ्य आज ही नहीं, अनंतकाल से सारे विश्व द्वारा स्वीकार किया जाता रहा है। केवल असुर ही इसे अस्वीकार करते रहे हैं। जो भी हो, चूंकि कृष्ण सर्वस्वीकृत परम प्रमाण हैं, अत: अर्जुन उन्हीं से प्रश्र करता है, ताकि श्री कृष्ण इस बारे में स्वयं बताएं।         (क्रमश:)

Jyoti

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