श्री कृष्ण से जानिए न चाहते हुए भी क्यों पापकर्मों के लिए प्रेरित होता है मनुष्य

Tuesday, Aug 16, 2022 - 01:00 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कहा जाता है दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नही है जिसने कभी किसी ने पाप न किया हो। परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अक्सर न चाहते हुए अपने जीवन में पापकर्म कर बैठते हैं। मगर ऐसा क्यों होता है कि इस बारे में शायद ही किसी ने विचार किया होगा तो बता दें हिंदू धर्म के शास्त्रों में  इस संदर्भ में जानकारी दी गई है। बात करें श्रीमद्भगवद्गीता की तो उसमें भी इस संदर्भ में बात की गई है। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन ने श्री कृष्ण से उपदेश लवेते हुए इस बारे में प्रश्न किया था जिसका श्री कृष्ण ने एक श्लोक में उत्तर दिया था का कि आखिर न चाहते हुए मानव पापकर्मों के लिए प्रेरित हो जाता है। तो आइए जानते हैं विस्तार में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक को अनुवाद व तात्पर्य की मदद से इसके पीछे का कारण

श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-

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अथ केन प्रयुक्तोऽयं पाप चरति पूरुष:।
अनिच्छन्नपि वाष्र्णेय बलादिव नियोजित:॥36॥

अनुवाद : अर्जुन ने कहा : हे वृष्णिवंशी! मनुष्य न चाहते हुए भी पापकर्मों के लिए प्रेरित क्यों होता है? ऐसा लगता है कि उसे बलपूर्वक उनमें लगाया जा रहा हो? 

तात्पर्य : जीवात्मा परमेश्वर का अंश होने के कारण मूलत: अध्यात्मिक, शुद्ध एवं समस्त भौतिक कल्मषों से मुक्त रहता है। फलत: स्वभाव से वह भौतिक जगत के पापों में प्रवृत्त नहीं होता। किंतु जब वह माया के संसर्ग में आता है, तो वह बिना झिझक के और कभी-कभी मन के विरुद्ध भी अनेक प्रकार से पापकर्म करता है। अत: कृष्ण से अर्जुन का प्रश्र अत्यंत प्रत्याशापूर्ण है कि जीवों की प्रकृति विकृत क्यों हो जाती है। यद्यपि कभी-कभी जीव कोई पाप नहीं करना चाहता, किंतु उसे ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। किंतु ये पापकर्म अन्तर्यामी परमात्मा द्वारा प्रेरित नहीं होते, अपितु अन्य कारण से होते हैं।  (क्रमश:) 
 

Jyoti

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