श्रीमद्भगवद्गीता: अंतिम लक्ष्य ‘श्री कृष्ण’

Sunday, Jan 09, 2022 - 02:29 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
अंतिम लक्ष्य ‘श्री कृष्ण’

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्।

अनुवाद एवं तात्पर्य : श्रीभगवान ने कहा : हे निष्पाप अर्जुन! मैं पहले ही बता चुका हूं कि आत्म साक्षात्कार का प्रयत्न करने वाले दो प्रकार के पुरुष होते हैं। कुछ इसे ज्ञानयोग द्वारा समझने का प्रयत्न करते हैं तो कुछ भक्तियोग के द्वारा। द्वितीय अध्याय के 39वें श्लोक में भगवान ने दो प्रकार की पद्धतियों का उल्लेख किया है- सांख्ययोग तथा कर्मयोग या बुद्धियोग। इस श्लोक में इनकी और अधिक स्पष्ट विवेचना की गई है।

सांख्ययोग अथवा आत्मा तथा पदार्थ की प्रकृति का वैशेषिक अध्ययन उन लोगों के लिए है जो व्यावहारिक ज्ञान तथा दर्शन द्वारा वस्तुओं का ङ्क्षचतन एवं मनन करना चाहते हैं।

दूसरे प्रकार के लोग कृष्णभावनामृत में कार्य करते हैं जैसा कि द्वितीय अध्याय के 61वें श्लोक में बताया गया है। 39वें श्लोक में भी भगवान ने बताया है कि बुद्धियोग या कृष्णभावनामृत के सिद्धांतों पर चलते हुए मनुष्य कर्म के बंधनों से छूट सकता है तथा इस पद्धति में कोई दोष नहीं है।

अत: दोनों प्रकार के योग धर्म तथा दर्शन के रूप में अन्योन्याश्रित हैं। दर्शनविहीन धर्म मात्र भावुकता या कभी-कभी धर्मांधता है और धर्मविहीन दर्शन मानसिक ऊहापोह है। अंतिम लक्ष्य तो श्री कृष्ण हैं।

Jyoti

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