श्रीमद्भगवद्गीता: ‘ज्ञान’ तथा ‘कर्म’, क्या है श्रेष्ठ

Thursday, Jan 06, 2022 - 05:31 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुङ्क्षद्ध मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : आपके अनेकार्थक (मिले-जुले) उपदेशों से मेरी बुद्धि मोहित हो गई है। अत: कृपा करके निश्चयपूर्वक मुझे बताएं कि इनमें (ज्ञान तथा कर्म में) से मेरे लिए सर्वाधिक लाभप्रद (कल्याणकारी) क्या होगा? 

पिछले अध्याय में भगवद्गीता के उपक्रम के रूप में सांख्ययोग, बुद्धियोग, बुद्धि द्वारा इंद्रियनिग्रह, निष्काम कर्मयोग तथा नवदीक्षित की स्थिति जैसे विभिन्न मार्गों का वर्णन हुआ है किन्तु उसमें व्यवस्था नहीं है। कर्म करने तथा समझने के लिए अधिक व्यवस्थित मार्ग की आवश्यकता होगी।

अत: अर्जुन इन भ्रामक विषयों को स्पष्ट कर लेना चाहता था जिससे सामान्य मनुष्य बिना किसी भ्रम के उन्हें स्वीकार कर सके। यद्यपि श्री कृष्ण अर्जुन को वाक्चातुरी से चकराना नहीं चाहते थे किन्तु अर्जुन यह नहीं समझ सका कि कृष्णभावनामृत क्या है- जड़त्व है या कि सक्रिय सेवा।

दूसरे शब्दों में, अपने प्रश्नों से वह उन समस्त शिष्यों के लिए जो भगवद्गीता के रहस्य को समझना चाहते हैं, कृष्णाभावनामृत का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

Jyoti

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