श्रीमद्भगवद्गीता: श्री कृष्ण के बिना ‘शांति’ नहीं

Tuesday, Nov 16, 2021 - 12:52 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता 
यथारूप 
व्या याकार : 
स्वामी प्रभुपाद 
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता 

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम्।।

अनुवाद तथा तात्पर्य : कृष्ण भावना भावित होकर जो परमेश्वर से संबंधित नहीं है, उसकी न तो बुद्धि दिव्य होती है और न ही मन स्थिर होता है जिसके बिना शांति की कोई स भावना नहीं है और शांति के बिना सुख हो भी कैसे सकता है?

कृष्णभावनाभावित हुए बिना शांति की कोई संभावना नहीं हो सकती। अत: इसकी पुष्टि की गई है कि जब मनुष्य यह समझ लेता है कि कृष्ण ही यज्ञ तथा तपस्या के उत्तम फलों के एकमात्र भोक्ता हैं और समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं तथा वह समस्त जीवों के असली मित्र हैं तभी उसे वास्तविक शांति मिल सकती है। अत: यदि कोई कृष्णभावनाभावित नहीं है तो उसके मन में कोई अंतिम लक्ष्य का अभाव है। 

जब मनुष्य को यह पता चल जाता है कि कृष्ण ही भोक्ता, स्वामी तथा सबके मित्र हैं, तो स्थिर चित्त होकर शांति का अनुभव किया जा सकता है।  जो कृष्ण से संबंध न रख कर कार्य में लगा रहता है, वह निश्चय ही सदा दुखी और अशांत रहेगा, भले ही वह जीवन में शांति तथा आध्यात्मिक उन्नति का कितना ही दिखावा क्यों न करे। कृष्णभावनामृत स्वयं प्रकट होने वाली शांतिमयी अवस्था है, जिसकी प्राप्ति कृष्ण के संबंध से ही हो सकती है।

Jyoti

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