श्रीमद्भगवद्गीता: ‘पूर्ण ज्ञान’ की स्थिति

Wednesday, Sep 08, 2021 - 04:57 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता 

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : इस भौतिक जगत में जो व्यक्ति न तो शुभ की प्राप्ति से हर्षित होता है और न अशुभ के प्राप्त होने पर उससे घृणा करता है, वह पूर्ण ज्ञान में स्थिर होता है। भौतिक जगत में सदा ही कुछ न कुछ उथल-पुथल होती रहती है उसका परिणाम अच्छा हो चाहे बुरा। जो ऐसी उथल-पुथल से विचलित नहीं होता जो अच्छे (शुभ) या बुरे (अशुभ) से अप्रभावित रहता है, उसे कृष्णभावनामृत में स्थिर समझना चाहिए।

जब तक मनुष्य इस भौतिक संसार में है तब तक अच्छाई या बुराई की स भावना रहती है क्योंकि यह संसार द्वैत (द्वंदों) से पूर्ण है। किन्तु जो कृष्णभावनामृत में स्थिर है, वह अच्छाई या बुराई से अछूता रहता है क्योंकि उसका सरोकार कृष्ण से रहता है जो सर्वमंगलमय हैं। ऐसे कृष्णभावनामृत से मनुष्य पूर्ण ज्ञान की स्थिति प्राप्त कर लेता है, जिसे समाधि कहते हैं।

Jyoti

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