श्रीमद्भगवद्गीता ‘वाणी’ मनुष्य का प्रमुख गुण

Wednesday, Aug 25, 2021 - 05:45 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता ‘वाणी’ मनुष्य का प्रमुख गुण
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
‘वाणी’ मनुष्य का प्रमुख गुण

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ।।54।।

अनुवाद तथा तात्पर्य : अर्जुन ने कहा : हे कृष्ण! अध्यात्म में लीन चेतना वाले व्यक्ति (स्थित प्रज्ञ) के क्या लक्षण हैं? वह कैसे बोलता है तथा उसकी भाषा क्या है? वह किस तरह बैठता और चलता है?

जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के उसकी विशिष्ट स्थिति के अनुसार कुछ लक्षण होते हैं, उसी प्रकार कृष्णभावनाभक्ति पुरुष का भी विशिष्ट स्वभाव होता है- यथा उसका बोलना, चलना, सोचना आदि। जिस प्रकार धनी पुरुष के कुछ लक्षण होते हैं जिनसे वह धनवान जाना जाता है, जिस तरह रोगी अपने रोग के लक्षणों से रुग्ण जाना जाता है या कि विद्वान अपने गुणों से विद्वान जाना जाता है, उसी तरह श्री कृष्ण की दिव्य चेतना से युक्त व्यक्ति अपने विशिष्ट लक्षणों से जाना जाता है।

इन लक्षणों को भगवद्गीता से जाना जा सकता है किंतु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृष्णभावनाभावित व्यक्ति किस तरह बोलता है क्योंकि वाणी ही किसी मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण है। कृष्णभावनाभक्ति व्यक्ति का सर्वप्रमुख लक्षण है कि वह केवल कृष्ण तथा उन्हीं से संबंद्ध विषयों के बारे में बोलता है। (क्रमश:)  
 

Jyoti

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