श्रीमद्भगवद्गीता: क्या है समाधि का अर्थ

Sunday, Jun 06, 2021 - 04:37 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

लोक मत के अनुसार समाधि शब्द का अर्थ है सम+अधि अर्थात जब मनुष्य का चित्त पूरी तरह से आत्मा में समाहित हो जाता है, उस अवस्था को समाधि कहा जाता है। कहा जाता है इसमें केवल ध्येय का ही भान रहता है। जब ध्याता व ध्यान का स्वरूप शून्य हो जाता है तब वह अवस्था समाधि कहलाती है। अगर साधाारण शब्दों की बात करें तो इसके अनुसार धारणा से ध्यान व ध्यान से समाधि की स्थिति में स्थित हुआ जाता है। ये तो हुई प्रचलित किंवदंतियों की बात, अब जानते हैं श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने समाधि का क्या अर्थ बताया है।

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : जो लोग इंद्रियभोग तथा भौतिक ऐश्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोह ग्रस्त हो जाते हैं, उनके मनों में भगवान के प्रति भक्ति का दृढ़ निश्चय नहीं होता।

समाधि का अर्थ है ‘स्थिर मन।’ 

वैदिक शब्दकोश निरुक्ति के अनुसार- संयग आधीयतेऽ स्मिन्नात्मतत्वयाथात् यम्- जब मन आत्मा को समझने में स्थिर रहता है तो उसे समाधि कहते हैं। जो लोग इंद्रियभोग में रुचि रखते हैं अथवा जो ऐसी क्षणिक वस्तुओं से मोहग्रस्त हैं उनके लिए समाधि कभी भी संभव नहीं है। माया के चक्कर में पड़कर वे न्यूनाधिक पतन को प्राप्त होते हैं। 
 

Jyoti

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