क्या है ‘श्रद्धा’ का सही अर्थ, श्री कृष्ण से जानें

Wednesday, May 26, 2021 - 02:56 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनंदन
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : जो इस मार्ग पर (चलते) हैं वे प्रयोजन में दृढ़ रहते हैं और उनका लक्ष्य भी एक होता है। हे कुरुनंदन! जो दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं हैं उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है। यह दृढ़ श्रद्धा कि कृष्णभावनामृत द्वारा मनुष्य जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त कर सकेगा, व्यवसायात्मिका बुद्धि कहलाती है।

श्रद्धा का अर्थ है किसी आलौकिक वस्तु में अटूट विश्वास। जब कोई कृष्णभावना के कार्यों में लगा होता है तो उसे परिवार, मानवता या राष्ट्रीयता से बंध कर कार्य करने की आवश्यकता नहीं होती। पूर्व में किए गए शुभ-अशुभ कर्मों के फल ही उसे सकाम कर्मों में लगाते हैं।

जब कोई कृष्णभावनामृत में संलग्न हो तो उसे अपने कार्यों में शुभ फल के लिए प्रयत्नशील नहीं रहना चाहिए जब कोई कृष्णभावनामृत में लीन होता है तो उसके सारे कार्य आध्यात्मिक धरातल पर होते हैं क्योंकि उनमें अच्छे तथा बुरे का द्वैत नहीं रह जाता।

कृष्णभावनामृत की प्रगति के साथ क्रमश: यह अवस्था स्वत: प्राप्त हो जाती है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति का दृढ़ निश्चय ज्ञान पर आधारित है। जिस प्रकार वृक्ष की जड़ सींचने पर स्वत: ही पत्तियों तथा टहनियों में जल पहुंच जाता है उसी तरह कृष्णाभावनाभक्ति होने पर मनुष्य प्रत्येक प्राणी की अर्थात अपनी, परिवार की, समाज की, मानवता की सर्वोच्च सेवा कर सकता है। यदि मनुष्य के कर्मों से कृष्ण प्रसन्न हो जाएं तो प्रत्येक व्यक्ति संतुष्ट होगा किन्तु कृष्णभावनामृत सेवा गुरु के सवर्थ निर्देशन में ही ठीक से हो पाती है। (क्रमश:) 

Jyoti

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