श्रीमद्भगवद्गीता: युद्ध में मर जाना ही ‘श्रेयस्कर’

Sunday, Apr 18, 2021 - 12:37 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
अकीॄत चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम।
स भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते॥

अनुवाद एवं तात्पर्य- 
अब अर्जुन के मित्र तथा गुरु के रूप में भगवान कृष्ण उन्हें युद्ध से विमुख न होने का अंतिम निर्णय देते हैं। वह अर्जुन को समझाते हैं कि ऐसा करने से लोग सदैव तु्महारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है।

वह कहते हैं, ‘‘अर्जुन! यदि तुम युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही युद्ध भूमि छोड़ देते हो तो लोग तुम्हें कायर कहेंगे और यदि तुम सोचते हो कि लोग गाली देते रहें, किन्तु तुम युद्धभूमि से भाग कर अपनी जान बचा लोगे तो मेरी सलाह है कि त हारे लिए युद्ध में मर जाना ही श्रेयस्कर होगा। तुम जैसे स माननीय व्यक्ति के लिए अपयश मृत्यु से भी बुरा है। अत: तु हें अपने प्राणों के भय से भागना  नहीं चाहिए, युद्ध में मर जाना ही तु हारे लिए श्रेयस्कर होगा। इससे तुम मेरी मित्रता का दुरुपयोग करने तथा समाज में अपनी प्रतिष्ठा खोने के अपयश से बच जाओगे।’’ 

अर्जुन के लिए भगवान श्री कृष्ण का यही अंतिम निर्णय था कि वह संग्राम से पलायन करने की बजाय युद्ध में मरे। (क्रमश:)

Jyoti

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