सनातन ज्ञान: असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से ज्योति की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर

Tuesday, Nov 15, 2022 - 02:16 PM (IST)

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हमारे वैदिक सनातन धर्म के साहित्य में उपनिषदों में मानवीय जीवन के रहस्यों तथा उनसे संबंधित गूढ़तम प्रश्नों को सुलझाने के लिए हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने सहस्रों वर्षों के चिंतन से आध्यात्मिक तत्वों का साक्षात्कार किया।

वैदिक साहित्य में पढ़े जाने वाले अंतिम भाग, जिसे हम वेदांत कहते हैं, उन्हें ही उपनिषदों के नाम से भी जाना जाता है। उपनिषदों में जीव और ब्रह्म की एकता का निरुपण किया गया है। ‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी’ अर्थात जीव उस ईश्वर का अविनाशी अंश है। वह परमात्मा शाश्वत, चेतन तथा आनंदस्वरूप है। इस स्थिति को केवल अनुभव ही किया जा सकता है। इन उपनिषदों में ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतर प्रसिद्ध उपनिषदों में से हैं।

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जोथा मा गृध: कस्यस्विद्धनम्।।

 यह ईशावास्योपनिषद् का कथन है कि जड़ चेतन प्राणियों वाली यह समस्त सृष्टि परमात्मा से व्याप्त है। उस परमात्मा द्वारा प्रदान किए गए पदार्थों का मनुष्य आवश्यकतानुसार भोग करे। इस श्लोक में मनुष्य को भौतिक संग्रह करने की अपनी लालसा पर नियंत्रण करने का उपदेश दिया गया है।

आदि शंकराचार्य ने भी इन उपनिषदों पर अपने भाष्य लिखे हैं। उपनिषद हमारी वैदिक सनातन भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि एवं धरोहर हैं। ये हमें वेद के मर्म तक पहुंचाने में सहायक हैं।

महर्षि वेद व्यास जी, जिन्होंने हमारे अधिकांश वैदिक सनातन साहित्य की रचना की है, उन्होंने श्रीमद्भागवद् गीता जी को भी उपनिषद के रूप में संबोधित किया है। वह कहते हैं कि सभी उपनिषद मानो गौएं हैं, उनका दोहन गोपालानंदन भगवान श्री कृष्ण ने श्री गीता जी के रूप में किया है। इसका तात्पर्य यह है कि श्री गीता जी में समस्त वेद तथा उपनिषदों का सारगॢभत ज्ञान है।

उपनिषद का अर्थ ही है ‘‘शिष्यों द्वारा गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाने वाला वैदिक ज्ञान।’’ 

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अर्जुन ने भी स्वयं को भगवान श्री कृष्ण को अपना गुरु मान कर गीता ज्ञान ग्रहण किया ‘शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।’’

भगवान श्री कृष्ण से अर्जुन कहते हैं कि मैं आपका शिष्य हूं। आपकी शरण में आया हूं। मुझे आप ज्ञान दीजिए।

आज की युवा पीढ़ी हमारी इस अत्यंत प्रतिभा सम्पन्न ज्ञान से अनभिज्ञ है। समाज में हो रही मानवीय मूल्यों में कमी तथा आदर्श विहीनता की स्थिति ने समाज में अस्थिरता, संघर्ष, अनिश्चितता, अन्याय तथा चरित्र पतन जैसी स्थिति को उत्पन्न किया है। आज आवश्यकता है उपनिषद आधारित कल्याणप्रद सृजनात्मक ज्ञान को अपनाने की। 

शुद्ध अंत:करण से हमारे ऋषियों-मुनियों ने युगों-युगों से हमारी सनातन ज्ञान निधि की परम्परा को जागृत रखा। 

‘‘असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से ज्योति की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर मुझे ले चलो,’’ 

उपनिषदों के ये वाक्य सदैव मानवता को प्रेरणा प्रदान करते रहेंगे।  —रविशंकर शर्मा, जालंधर

Jyoti

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