Srimad Bhagavad Gita: निजी जीवन में संतुलन बनाए रखने की कुंजी है श्रेष्ठता का मार्ग

Thursday, Apr 27, 2023 - 01:21 PM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण हमें विश्वास दिलाते हैं कि (3.19) अनासक्ति (आसक्ति और विरक्ति को पार करना) सहित कर्म करने से व्यक्ति श्रेष्ठता को प्राप्त होता है। वह राजा जनक (3.20) का उदाहरण देते हैं, जिन्होंने केवल कर्म से ही श्रेष्ठता प्राप्त की थी। श्री कृष्ण इस बात पर जोर देते हैं कि विलासिता में रहने वाला राजा जिसके पास कई  जिम्मेदारियां हों, वह भी अनासक्ति से सभी कार्य करते हुए श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है। 

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अर्थात हम भी इसी तरह अपनी परिस्थितियों के बावजूद श्रेष्ठता तक पहुंच सकते हैं। इतिहास में ऐसे उदाहरण दुर्लभ ही मिलते हैं जहां दो प्रबुद्ध लोगों ने वार्तालाप किया हो। ऐसी एक वार्ता राजा जनक व ऋषि अष्टावक्र के बीच है। इसे ‘अष्टावक्र  गीता’ के नाम से जाना जाता है। यह साधकों के लिए सर्वश्रेष्ठ में से एक है।

कहते हैं कि किसी गुरु ने अपने छात्रों में से एक को अंतिम पाठ के लिए जनक के पास भेजा। वह छात्र लंगोटी पहनता और भिक्षा मांगने के लिए कटोरा हाथ में रखता था।

वह जनक के पास आता है तो सोचने लगता है कि उसके गुरु ने उसे इस आदमी के पास क्यों भेजा जो ऐश्वर्य के बीच महल में रहता है। एक सुबह जनक उसे नहाने के लिए पास की एक नदी में ले जाते हैं। डुबकी लगाने के दौरान उन्हें खबर मिलती है कि महल जल गया है। 

छात्र महल में रखी अपनी लंगोटियों के लिए चिंतित हो जाता है जबकि जनक अविचलित रहते हैं। उसी पल छात्र को बोध हुआ कि एक साधारण लंगोटी से मोह भी एक तरह का लगाव ही है जिसे छोड़ने की जरूरत है।

अनासक्ति से कर्म करना ही गीता का मूल उपदेश है। यह संबद्ध होने के साथ-साथ असंबद्ध होने की स्थिति है। भौतिक दुनिया में व्यक्ति को पूरी तरह से संबद्ध होकर दी गई स्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन  करना है। साथ ही, वह आंतरिक रूप से असंबद्ध है क्योंकि इस तरह के कार्यों के परिणाम उसे प्रभावित नहीं करेंगे। 

परिणाम किए गए प्रयासों के अनुसार हो सकता है या यह पूरी तरह से विपरीत हो सकता है और किसी भी मामले में, अनासक्त व्यक्ति न तो चिंतित और न ही परेशान होता है। यही धारणा निजी जीवन में संतुलन बनाए रखने की कुंजी है।

Niyati Bhandari

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