Srimad Bhagavad Gita: तप कर ही सोना कुंदन बनता है

Friday, Feb 24, 2023 - 10:50 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: श्रीमद् भगवद् गीता का जन्म युद्ध के मैदान में हुआ था और वर्तमान महामारी का समय कुरुक्षेत्र युद्ध के समान ही है। गीता में एक वाक्यांश निमित्तमात्र इसका सार प्रस्तुत करता है। अर्जुन की इच्छा श्रीकृष्ण की वास्तविकता (यथार्थ) को देखने और उसे समझने के लिए अतिरिक्त ज्ञान की आवश्यकता पाने की थी। भगवान ने उसे वही ज्ञान श्रीकृष्ण के विश्वरूपम को देखने के लिए दिया था। अंतरिक्ष में वास्तविकता दिखाने के अलावा, श्रीकृष्ण उसे भविष्य तक पहुंच प्रदान करते हैं और अर्जुन कई योद्धाओं को मौत के मुंह में प्रवेश करते हुए देखते हैं।  

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तब भगवान कहते हैं कि ये योद्धा जल्द ही मर जाएंगे और आप उस प्रक्रिया में केवल एक उपकरण अथवा साधन हैं। श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि अर्जुन कर्ता नहीं हैं और दूसरी बात, वह यह सुनिश्चित करते हैं कि अर्जुन जब विजेता के रूप में सामने आएंगे तो अहंकार से मुक्त होंगे क्योंकि जीत अहंकार को सर्वाधिक बढ़ावा देती है। वहीं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान से बाहर नहीं जाने दिया। निमित्तमात्र आंतरिक बोध है और इससे जो निकलता है, उसका शुद्ध और अहंकार से मुक्त होना तय है।

कोरोना महामारी में, सड़क पर या कहीं भी किसी व्यक्ति के लिए, कठिनाइयां अर्जुन के समान ही होती हैं। निकट भविष्य में लगभग कोई इलाज नहीं होने के कारण हम केवल निमित्तमात्र हैं और हमें सौंपी गई भूमिका में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए। यह छोटा-सा अहसास वास्तव में एक वरदान हो सकता है क्योंकि गीता की कई अवधारणाएं तब तक स्पष्ट नहीं होती हैं जब तक उन्हें जीवन में अनुभव नहीं किया जाता। खासकर कठिन परिस्थिति में।

कोयले का ढेला अत्यधिक दबाव में हीरे में बदल जाता है व ज्वाला में तप कर ही सोना कुंदन बनता है। ये परीक्षा का समय निमित्तमात्र की प्राप्ति को पोषित करने के लिए सही आधार है और यह अवसर हमें समर्पण के मार्ग के माध्यम से हमारे आंतरिक आत्म के करीब ले जाने की क्षमता रखता है।   

Niyati Bhandari

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