स्वामी प्रभुपाद श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप: ‘कर्मफल’ से मुक्ति

Sunday, Jan 29, 2023 - 10:06 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

स्वामी प्रभुपाद: साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य:। स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत्॥

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

अनुवाद एवं तात्पर्य : जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है और सब प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रह कर भी दिव्य स्थिति में रहता है। कृष्णभावनामृत में कार्य करने वाला व्यक्ति स्वभावत: कर्मबंधन से मुक्त होता है। उसके सारे कर्म श्री कृष्ण के लिए होते हैं, अत: कर्म के फल से उसे कोई लाभ या हानि नहीं होती। फलस्वरूप वह मानव समाज में बुद्धिमान होता है, यद्यपि वह कृष्ण के लिए सभी तरह के कर्मों में लगा रहता है।

अकर्म का अर्थ है कर्म के फल के बिना। र्निवशेषवादी भयवश सारे कर्म करना बंद कर देता है, जिससे कर्मफल उसके आत्म साक्षात्कार के मार्ग में बाधक न हो किन्तु सगुणवादी अपनी स्थिति से भलीभांति परिचित रहता है कि वह भगवान का नित्य दास है।

अत: वह अपने आप को कृष्णभावनामृत के कार्यों में तत्पर रखता है। चूंकि सारे कर्म श्री कृष्ण के लिए किए जाते हैं, अत: इस सेवा के करने में उसे दिव्य सुख प्राप्त होता है। जो इस विधि में लगे रहते हैं वे व्यक्तिगत इंद्रियतृप्ति की इच्छा से रहित होते हैं। श्री कृष्ण के प्रति उसका नित्य दास्यभाव उसे सभी प्रकार के कर्मफल से मुक्त करता है।

Niyati Bhandari

Advertising