Srimad Bhagavad Gita: कृष्णभावनामृत में किया गया कर्म ही भवबंधन से उबार सकता है

Sunday, Jan 15, 2023 - 09:30 AM (IST)

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स्वामी प्रभुपाद:  श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिता:।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥

अनुवाद : कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इसे निश्चित करने में बुद्धिमान व्यक्ति भी मोहग्रस्त हो जाते हैं। अतएव मैं तुमको बताऊंगा कि कर्म क्या है, जिसे जानकर तुम सारे अशुभ से मुक्त हो सकोगे।

कृष्णभावनामृत में जो कर्म किया जाए वह पूर्ववर्ती प्रामाणिक भक्तों के आदर्श के अनुसार होना चाहिए। इसका निर्देश 15वें श्लोक में किया गया है। ऐसा कर्म स्वतंत्र क्यों नहीं होना चाहिए, इसकी व्याख्या अगले श्लोक में की गई है।

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 तात्पर्य:  कृष्णभावनामृत में कर्म करने के लिए मनुष्य को उन प्रामाणिक पुरुषों के नेतृत्व का अनुगमन करना होता है, जो गुरु-परम्परा में हों, जैसा कि इस अध्याय के प्रारंभ में कहा जा चुका है। कृष्णभावनामृत पद्धति का उपदेश सर्वप्रथम सूर्यदेव को दिया गया, यह पद्धति तब से इस पृथ्वी पर चली आ रही है।
अत: परम्परा के पूर्ववर्ती अधिकारियों के पदचिन्हों का अनुसरण करना आवश्यक है। अन्यथा बुद्धिमान से बुद्धिमान मनुष्य भी कृष्णभावनामृत के आदर्श कर्म के विषय में मोहग्रस्त हो जाते हैं इसीलिए भगवान ने स्वयं ही अर्जुन को कृष्णभावनामृत का उपदेश देने का निश्चय किया। 

अर्जुन को साक्षात् भगवान ने शिक्षा दी, अत: जो भी अर्जुन के पदचिन्हों पर चलेगा वह कभी मोहग्रस्त नहीं होगा। केवल कृष्णभावनामृत में किया गया कर्म ही मनुष्य को भवबंधन से उबार सकता है।


 

Niyati Bhandari

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