Srimad Bhagavad Gita: कण-कण में भगवान

Tuesday, Dec 13, 2022 - 08:00 AM (IST)

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स्वामी प्रभुपाद: श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप, साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश:॥

अनुवाद : जो जिस भाव से मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूं। हे पार्थ ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है।

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तात्पर्य : प्रत्येक व्यक्ति कृष्ण को अनेक विभिन्न स्वरूपों में खोज रहा है। भगवान श्रीकृष्ण को प्रत्येक वस्तु के कण-कण में रहने वाले सर्वव्यापी परमात्मा के रूप में अनुभव किया जाता है, लेकिन उनका पूर्ण साक्षात्कार तो उनके शुद्ध भक्त ही कर पाते हैं। फलत: कृष्ण प्रत्येक व्यक्ति की अनुभूति के विषय हैं और इस तरह कोई भी और सभी अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार तुष्ट होते हैं।

दिव्य जगत में भी कृष्ण अपने भक्तों से उनके चाहने के अनुसार दिव्य प्रवृत्ति का विनिमय करते हैं। कोई एक भक्त कृष्ण को परम स्वामी के रूप में चाह सकता है, दूसरा अपने सखा के रूप में, तीसरा अपने पुत्र के रूप में और चौथा अपने प्रेमी के रूप में। कृष्ण सभी भक्तों को समान रूप से उनके प्रेम की प्रगाढ़ता के अनुसार फल देते हैं।

भौतिक जगत में भी ऐसी ही विनिमय की अनूभूतियां होती हैं और वे विभिन्न  प्रकार के भक्तों के अनुसार भगवान् द्वारा समभाव से विनिमय की जाती हैं। शुद्ध भक्त यहां पर और दिव्यधाम में भी कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करते हैं और भगवान की साकार सेवा कर सकते हैं। इस तरह वे उनकी प्रेमाभक्ति का दिव्य आनंद प्राप्त करते हैं।

किंतु जो निर्विशेषवादी हैं और जो जीवात्मा के अस्तित्व को मिटाकर आध्यात्मिक आत्मघात करना चाहते हैं, कृष्ण उनको भी अपने तेज में लीन करके उनकी सहायता करते हैं। ऐसे निर्विशेषवादी सच्चिदानंद भगवान को स्वीकार नहीं करते, फलत: वे अपने व्यक्तित्व को मिटाकर भगवान की दिव्य सगुण भक्ति के आनंद को प्राप्त नहीं करते।

जो सकामकर्मी हैं, भगवान उन्हें यज्ञेश्वर के रूप में उनके कर्मों का वांछित फल देते हैं। जो योगी हैं और योगशक्ति की खोज में रहते हैं, उन्हें योगशक्ति प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति की सफलता भगवान की कृपा पर आश्रित रहती है और समस्त प्रकार की आध्यात्मिक विधियां एक ही पथ में सफलता की विभिन्न कोटियां हैं। अत: जब तक कोई कृष्णभावनामृत की सर्वोच्च सिद्धि तक नहीं पहुंच जाता, तब तक सारे प्रयास अपूर्ण रहते हैं।

Niyati Bhandari

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