Srimad Bhagavad Gita: घृणा भी एक बंधन है

Friday, Dec 09, 2022 - 10:34 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Srimad Bhagavad Gita: हम किसी स्थिति, व्यक्ति या किसी कार्य के परिणाम का नामांकन तीन तरह से करते हैं- शुभ, अशुभ या कोई नाम नहीं। श्री कृष्ण इस तीसरी अवस्था का उल्लेख करते हैं और कहते हैं कि एक बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो शुभ की प्राप्ति पर खुशी से झूम नहीं उठता और न ही वह अशुभ से घृणा करता है और हमेशा बिना आसक्ति के रहता है। तात्पर्य है कि स्थित-प्रज्ञ स्थितियों को नाम देना छोड़ देता है और तथ्यों को तथ्यों के रूप में लेता है, क्योंकि नाम देना सुख और दुख की ध्रुवीयताओं का स्रोत है।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

यह बात कठिन है क्योंकि यह नैतिक और सामाजिक संदर्भों में भी तथ्यों को तुरंत शुभ या अशुभ कहने की हमारी प्रवृत्ति के विपरीत है।
जब कोई बुरे के रूप में नामांकित की गई किसी स्थिति या व्यक्ति का सामना करता है, तो नापसंद, घृणा और विमुखता अपने आप उत्पन्न होते हैं।

दूसरी ओर, स्थित-प्रज्ञ इसे कोई नाम नहीं देता और इसलिए किसी से घृणा का प्रश्न ही नहीं उठता। इसी प्रकार शुभ होने पर स्थित-प्रज्ञ खुशी से फूला नहीं समाता। उदाहरण के लिए, हम सभी समय के साथ उम्र बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरते हैं, जब सुंदरता, आकर्षण और ऊर्जा खो जाती है।

यह केवल प्राकृतिक तथ्य है, लेकिन अगर हम इसे अप्रिय या बुरा कहते हैं, तो इस प्रकार के नाम देना दुख लाएगा। चोट या बीमारी के मामले में भी ऐसा ही होता है, जहां इन्हें बुराई के रूप में नामांकन करने से दुख होता है। निश्चित रूप से, यह न तो इन स्थितियों से इंकार करना है और न ही आवश्यकता से अधिक विचार करना।

स्थित-प्रज्ञ एक ‘सर्जन’ की तरह स्थितियों को संभालता है, जो जांच के दौरान सामने आए तथ्यों के आधार पर सर्जरी करता है।
यह एक सुपर-कंडक्टर की तरह है जो पूरी बिजली को गुजरने देने की पूरी कोशिश करता है।

हम परिस्थितियों, लोगों या कर्मों से या तो जुड़ जाते हैं या उनसे दूर रहते हैं। जुड़ने को आसक्ति समझना आसान है, लेकिन दूर रहना भी एक प्रकार की आसक्ति है जिसमें घृणा शामिल होती है। जब श्री कृष्ण कहते हैं कि स्थित-प्रज्ञ आसक्ति रहित है, तो उनका अर्थ है कि वे लगाव और घृणा दोनों को छोड़ देते हैं।

Niyati Bhandari

Advertising