Srimad Bhagavad Gita: ‘यज्ञ’ के लाभ

Sunday, Feb 20, 2022 - 10:25 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

सहयज्ञा: प्रजा: सृष्द्वा पुरोवाच प्रजापति:।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।

अनुवाद एवं तात्पर्य : सृष्टि के प्रारंभ में समस्त प्राणियों के स्वामी (प्रजापति) ने विष्णु जी के लिए यज्ञ सहित मनुष्यों तथा देवताओं के उत्तराधिकारियों को रचा और उनसे कहा, ‘‘तुम इस यज्ञ से सुखी रहो क्योंकि इसके करने से तुम्हें सुखपूर्वक रहने तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिए समस्त वांछित वस्तुएं प्राप्त हो सकेंगी।’’

प्राणियों के स्वामी (विष्णु) द्वारा भौतिक सृष्टि की रचना बद्धजीवों के लिए भगवद्धाम वापस जाने का सुअवसर है। इस सृष्टि के सारे जीव प्रकृति द्वारा बद्ध हैं क्योंकि उन्होंने श्रीभगवान विष्णु या कृष्ण के साथ अपने संबंध को भुला दिया है। 

वैदिक नियम इस शाश्वत संबंध को समझने में हमारी सहायता के लिए हैं जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है-वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्य:। भगवान का कहना है कि वेदों का उद्देश्य मुझे समझना है। बद्धजीव के लिए यही संपूर्ण कार्यक्रम है। यज्ञ करने से बद्धजीव क्रमश: कृष्णभावनाभावित होते हैं और सभी प्रकार से देवतुल्य बनते हैं। कलियुग में वैदिक शास्त्रों ने संकीर्तन यज्ञ (भगवान के नामों का कीर्तन) का विधान किया है और इस दिव्य विधि का प्रवर्तन भगवान चैतन्य द्वारा इस युग के सारे पुरुषों के उद्धार के लिए किया गया। संकीर्तन यज्ञ तथा कृष्णभावनामृत में अच्छा तालमेल है।

Niyati Bhandari

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