Srimad Bhagavad Gita: सम्पूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी है ‘भगवद् गीता’

Tuesday, Dec 14, 2021 - 12:02 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Srimad Bhagavad Gita: जिस दिन परात्पर ब्रह्म सर्वलोकाधिपति भगवान श्री कृष्ण जी ने महाभारत ग्रंथ में वर्णित धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व मोहग्रस्त पांडु पुत्र अर्जुन को दिव्य श्रीमद् भगवद् गीता का उपदेश दिया, वह दिन मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी के दिन मनाया जाने वाला श्री गीता जयंती महापर्व के रूप में जगत प्रसिद्ध है।भगवान श्री हरि विष्णु जी के अंशावतार महर्षि वेद व्यास जी ने परात्पर ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त इस दिव्य श्री गीता ज्ञान के 18 अध्यायों का नामकरण करते समय उनमें ‘योग’ शब्द का प्रयोग किया। 

इसी ‘योग’ शब्द में भगवद् गीता जी का मूल भाव छिपा है। भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बड़े ही सरल भाव से ज्ञान योग तथा कर्म योग का मर्म अर्जुन को बताया। मन के द्वारा सर्वत्र आत्मा की सत्ता का अनुभव करना ज्ञान योग है। फल और आसक्ति का परित्याग करके कर्तव्य कर्मों को करना कर्म योग है। 

यज्ञ की महिमा बताते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जन कल्याण की भावना से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है। इन सबमें से गोविन्द भगवान ज्ञान यज्ञ को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए कहते हैं : न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।

इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है। कर्म की प्रधानता कहते हुए भगवान कहते हैं कि ज्ञान योगियों द्वारा भी अपने अंत:करण की पवित्रता के लिए निष्काम कर्म योग का आचरण किया जाता है। 

संन्यास कर्मों के परित्याग का नाम नहीं है बल्कि फल और आसक्ति का परित्याग कर कर्तव्य कर्मों को करना ही वास्तविक संन्यास है। भगवान कहते हैं कि उनकी माया के तीन गुणों से सम्पूर्ण प्राणीमात्र मोहित है। 

इन तीन गुणों का संग ही मनुष्य के बार-बार जन्म लेने का कारण बनता है। आनंद कंद भगवान स्वयं अपने मुखारविंद से अपने अविनाशी स्वरूप एवं प्रभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि : अहमात्मा गुडाकेश सर्व भूताशय स्थित:।

सब भूत प्राणियों में स्थित जो आत्मा है, वह मैं हूं। संपूर्ण चराचर जगत भगवान के विराट स्वरूप में स्थित है। श्री हरि गोविन्द ने अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान करते हुए उन्हें अपने सीमा रहित विराट स्वरूप के दर्शन कराए। 

भक्ति योग में भगवान ने साकार भक्ति को अपनी प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग बताया। इस शरीर को क्षेत्र तथा आत्मा को क्षेत्रज्ञ बताते हुए भगवान आत्मा को अपना ही स्वरूप बताते हुए कहते हैं कि यही वास्तविक ज्ञान है। इस क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के तत्व को जानने वाला ज्ञानी भक्त मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। 

भगवद् गीता की महिमा अनंत है। जो मनुष्य घोर संसार-सागर को तैरना चाहता है उसे गीतारूपी नौका पर चढ़कर सुखपूर्वक पार होना चाहिए। 

जहां निरन्तर भगवद् गीता का अभिनंदन होता है वहां श्री भगवान परमेश्वर में एकनिष्ठ भक्ति उत्पन्न होती है। 

केशव भगवान ने ब्रह्म विद्या के रूप में निष्काम कर्म योग तथा सांख्य योग अथवा बुद्धि योग का रहस्य बता कर अर्जुन के उन सभी संशयों का निवारण किया जो प्रत्येक देश, काल तथा परिस्थिति में मानव जीवन के लिए उपयोगी हैं।  

यह परम दिव्य उपदेश सम्पूर्ण विश्व के मानवीय समाज के हर वर्ग के लिए कल्याणकारी है। आज सम्पूर्ण विश्व इस ज्ञान का अध्ययन कर लाभान्वित हो रहा है। ज्ञान के प्रकाश का यह श्री गीता जयन्ती महापर्व आज संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है। 

भगवद् गीता में आत्म कल्याण तथा विश्व शांति अटल के शाश्वत सिद्धांत तथा मानवीय जीवन की हर संभव तथा असंभव जटिलताओं का समाधान हमें प्राप्त होता है जिसका अनुसरण कर मानव जीवन में कल्याण निश्चित है।    

 

Niyati Bhandari

Advertising