Srimad Bhagavad Gita: ‘श्रीमद्भगवद् गीता के अध्यायों का नामकरण रहस्य तथा सार’ - 2

Monday, Aug 16, 2021 - 09:29 AM (IST)

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द्वितीय अध्याय - ‘सांख्य योग’

Srimad Bhagavad Gita: जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अज्ञानजनित बातें करते हुए सुना तो भगवान ने अर्जुन से कहा,‘‘युद्ध भूमि में आकर तुम दुर्बल व्यक्ति की भांति बातें कर रहे हो। यह अज्ञान तुम्हें किस हेतु से प्राप्त हुआ है?’’

तब अर्जुन ने कहा, ‘‘मैं कायरतारूप दोष से ग्रस्त हुआ, धर्म के विषय में मोहितचित हुआ आप से कल्याणकारक साधन बताने की प्रार्थना करता हूं। मैं आपका शिष्य हूं, मैं आपकी शरण में आया हूं। मुझे ज्ञान दीजिए।’’

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अज्ञानजनित बातें करते देख उसे सर्वप्रथम आत्म ज्ञान प्रदान करते हुए कहा, ‘‘जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते कि यह किसी भी काल में नहीं जन्मता और न मरता है। यह नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।’’

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों का त्याग कर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर नए शरीरों को प्राप्त करता है इसलिए यह आत्मा सबके शरीर में सदा ही अवध्य है।’’

यहां धर्म का भाव कत्र्तव्य पराणयणता से है। अर्जुन पूछ रहे हैं कि उन्हें युद्ध करना चाहिए अथवा नही। इस विषय में वह मोहग्रस्त हैं। वह यह निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि कौन-सा मार्ग धर्म का है और कौन-सा अधर्म का। वह युद्ध भूमि से हट कर पाप और अधर्म से बचने का उपाय ढूंढ रहे थे।

तब भगवान श्री कृष्ण जी ने धर्म का सबसे सुंदर स्वरूप उनके समक्ष रखा कि,‘‘अगर तुम जय-पराजय, लाभ हानि और सुख-दुख को समान समझ कर युद्ध करोगे तो तुम पाप को प्राप्त नहीं होगे। तुम्हारा कर्म मात्र करने में ही अधिकार है, फल में कदापि नहीं।’’

इसे ही निष्काम कर्मयोग कहा गया है। चूंकि भगवान ने अर्जुन को इस अध्याय में ज्ञान के विषय में बतलाया है इसलिए इस का नाम सांख्य योग रखा गया।    

Niyati Bhandari

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