जानिए, तप और अध्यात्म के बादशाह के बारे में, दिव्य गुण लेकर हुए थे अवतरित

Saturday, Apr 08, 2017 - 04:20 PM (IST)

काल के अनादि प्रवाह में अनन्त शताब्दियां विलीन हो चुकी हैं। इस अंतराल में न जाने कितनी सभ्यताएं, संस्कृतियां और समुदाय काल-कवलित हो चुके होंगे। इस परिवर्तनशील सृष्टि में अनेक महान विभूतियों का प्रादुर्भाव हुआ और उन महान विभूतियों की श्रृंखला में तप और अध्यात्म के बादशाह स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज का जन्म 1811 ई. लुधियाना में उनके ननिहाल में हुआ। आपके पूज्य पिता थे-श्री अमोलक राय ओसवाल और पूज्य माता का नाम था- श्रीमती मंगला देवी। दिव्य आत्माएं अपने साथ पूर्व जन्मों में अर्जित शुभ संस्कारों की पूंजी लेकर ही अवतरित होती हैं। 

सौभाग्यवश उन दिनों मालेरकोटला में आचार्य पूज्य श्री इंद्र चंद्र जी महाराज पधारे। अपने माता-पिता के साथ बालक रूप चंद भी उनके दर्शनार्थ गए। आचार्य श्री जी ने बालक को देखकर भविष्य वाणी की कि यह बालक बड़ा होकर तेजस्वी, महात्मा और संयम धारण कर अपने अध्यात्म गुणों की मकरंद विसर्जित करेगा। स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज के जीवन में त्याग और वैराग्य की लहरें उठने लगीं और उन्होंने पूज्य गुरुदेव श्री नंद लाल जी महाराज के चरणों में (बड़ौदा में)1837 ई. में 26 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा अंगीकार की।

मुनि-दीक्षा अंगीकार कर आपने ध्यान, स्वाध्याय और तप के मार्ग को अपनाया। भगवान महावीर ने कहा था, हे श्रमणो ‘समय निर्दयी है और शरीर निर्बल है, अत: अप्रमत्त’ भाव से तप, त्याग और साधना के मार्ग पर दृढ़तापूर्वक चलते रहो। भगवान महावीर की इस देशना को स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज नेे अपने साधक जीवन में आत्मसात किया। वह निरंतर तप, त्याग, ध्यान तथा स्वाध्याय में प्रवृत्त रहते थे। वह सहज तथा नैसर्गिक जीवन चर्या के पक्षधर थे। नीतिकार कहते हैं कि जो पुरुष होते हैं उनकी जुबान बोलती है और जो महापुरुष होते हैं, उनका जीवन बोलता है। 

स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज का जीवन बोलता था इसलिए सहस्रों लोगों ने उनके महान आध्यात्मिक गुणों का अनुसरण किया। आपने अपने तजस्वी जीवन में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में 42 चातुर्मास किए। इन चातुर्मासों में आपने सहस्रों लोगों को जीवन जीने की कला सिखाई, अनगिनत लोगों को नशामुक्त किया। मांसाहार तथा सुरापान से बचाया। आपका जीवन चमत्कारी था और सबसे बढ़कर आपका संयम, त्याग तथा प्राणी मात्रा के प्रति आत्मीयता आपके विराट व्यक्तित्व के प्रधान गुण थे। आपका देवलोक गमन 1880 ई. में जगराओं (पंजाब) में हुआ। आज भी सहस्रों श्रद्धालु आपके दैवी गुणों का स्मरण कर स्वयं को धन्य मानते हैं। 19 मार्च 2017 को आपका दीक्षा-दिवस श्रद्धापूर्वक मनाया गया।         
साहित्य रत्न डा. मुलख राज जैन
 

Advertising