जब भोले बाबा श्रीराम का दर्शन पाने के लिए बनें मदारी, जानें आगे क्या हुआ

Tuesday, Dec 27, 2016 - 03:26 PM (IST)

श्रीराम का जन्म अयोध्या नगरी में होने के बाद भगवान शंकर उनकी बाल-लीलाओं का दर्शन करने के लिए अयोध्या आते और चले जाते। कभी-कभी अयोध्या में रूक भी जाते। श्रीराम के दर्शनों की अभिलाषा से कभी उन्हें ज्योतिषी तथा कभी भिक्षुक बनना पड़ता। एक बार भोलेनाथ श्रीराम के महल में मदारी बन कर आए। उनके साथ बहुत सुंदर नाचने वाला वानर था। मदारी डमरू बजाते-बजाते राजमहल के द्वार पर पहुंच गया। डमरू की आवाज से राजमहल के बाहर कई बालक दौड़ते हुए मदारी का खेल देखने आ गए। 


भगवान श्रीराम भी अपने भाईयों के साथ खेल देखने आए। यह वानर साधारण नहीं था, अपने भगवान को रिझाने एवं प्रसन्न करने के लिए हनुमान रूप में प्रकट स्वयं शिव जी ही थे। वानर की लीला देखकर श्रीराम अपने भाईयों सहित बहुत खुश हुए तथा उसके खेल पर रीझ गए। 


भगवान श्रीराम ने हठ कर लिया कि वह इस वानर को महल में रखकर खेलना चाहते हैं। श्रीराम एक साधारण बालक नहीं वरना राजकुमार थे। अतः उनका यह हठ कैसे पूरा नहीं किया जाता। महाराज  दशरथ ने आज्ञा दी कि बंदर के बदले में मदारी जितना मूल्य मांगे उसे तत्काल दे दिया जाए। वानर श्रीराम को ही दिया जाए। मदारी धन का भूखा नहीं था वह तो अपने प्रभु के दर्शन तथा अपने आप को उनके चरण कमलों में समर्पित करने आया था । 


भगवान श्रीराम ने वानर को प्राप्त किया और उसके साथ नाचने लगे। शंकर जी की युग-युग की मनोकामना आज पूरी हुई। शंकर जी प्रसन्न होकर वानर रूप में नाचने लगे तथा उनका साथ श्रीराम भी दे रहे थे। जब सभी वानर के नाच में मंत्र मुग्ध थे, तब मदारी उनके बीच से अन्तर्धान हो गया। वह मदारी वानर में प्रवेश कर गया । अपना कार्य पूर्ण कर कैलाश पर्वत चला गया । 


वानर के रूप में हनुमान बहुत दिनों तक भगवान श्रीराम की सेवा और मनोरंजन में लगे रहे। कुछ वर्ष बाद महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को राक्षसों के वध के लिए वन ले जाने के लिए आए । भगवान श्रीराम ने उन्हें  (हनुमान् को) एकान्त में बुलाकर समझाया। श्रीराम ने हनुमान् से कहा, हनुमान तुम मेरे अनन्य भक्त अन्तरंग सखा हो, तुमसे मेरी कोई भी लीला छिपी नहीं है । अब इस लीला में आगे मैं रावण का वध करूंगा । उस समय मुझे तुम्हारी तथा अन्य वानरों की आवश्यकता होगी। 


मैं ताड़का, सुबाहु, खर-दूषण त्रिशिरा, मारीच आदि का भी वध करूंगा। तुम शबरी से भेंट कर ऋष्यमूक पर्वत जाओ और सुग्रीव से मित्रता करो। मैं सीता जी की खोज में वहां आऊंगा तब तुम सुग्रीव से मुझे मिलाना और उसकी सहायता से वानरों की एक विशाल सेना एकत्रित करने में सहायता करना। रावण का वध कर मैं अपने अवतार का कार्य पूर्ण करूंगा। हनुमान् को भगवान श्रीराम को छोड़कर जाने की इच्छा नहीं थी । किन्तु अपने स्वामी की आज्ञा पालन करने के लिए उसी समय ऋष्यमूक पर्वत के लिए चले गए।    


यही प्रसंग श्रीराम तथा हनुमान् के अनन्य प्रेम का है। उनके बिछोह होने पर दुःख तो हुआ किन्तु स्वामी की आज्ञा को परम धर्म मानकर चले गए।     

                                  
डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता   

                    

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