कृष्णावतार

punjabkesari.in Sunday, Dec 18, 2016 - 03:18 PM (IST)

पांडवों के वनवास का 11वां वर्ष बीत रहा था। अर्जुन के लौट आने के बाद पांडव गंधमादन पर्वत पर कुछ समय और रहे तथा उसके बाद उन्होंने भीम से कहा, ‘‘भैया अब हम लोग यहां से घूमते-फिरते कामेक वन को लौट चलेंगे। वहां गुरुजनों से हमारी अवश्य भेंट होगी और उनसे विचार-विमर्श करके हम एक वर्ष के अज्ञातवास का कार्यक्रम बनाएंगे इसलिए यदि तुम घटोत्कच और उसके राक्षसों को बुला लो तो काफी सुविधा हो जाएगी।’’

 

यह सुन कर भीम बोले, ‘‘मैं धनपति कुबेर के पास जाकर प्रार्थना करता हूं कि वह किसी तीव्रगामी विमान में किसी राक्षस को घटोत्कच के पास भेज दें। वह शीघ्र ही उसके साथ आ जाएगा।’’

 

इस पर द्रौपदी ने मुस्कुराते हुए धर्मराज युधिष्ठिर से कहा, ‘‘धर्मराज, धनाधीश के पास जाने का आप स्वयं कष्ट करें या उनके पास किसी अन्य व्यक्ति से संदेश भिजवा दें तो उचित रहेगा। महात्मा कुबेर के पास इन्हें भेजना संकट का कारण बन सकता है।’’

 

यह सुन कर भीम बिगड़ उठे और कहने लगे, ‘‘मेरा बेटा तुझे इतने दिन लादे फिरता रहा। मर जाती तू कहीं बर्फ में गिर कर और अब तू मेरी निंदा कर रही है।’’ 

 

‘‘मैं निंदा कहां कर रही हूं आपकी? महाबली महाराज वरकोदर की निंदा करने वाला भी कभी इस संसार में जीवित रह सकता है? मैं तो केवल संकट की बात कर रही थी।’’

 

‘‘हां-हां संकट की बात कही थी। जैसे सारे संकटों से यह राजन ही तुम सबको अब तक बचाता रहा है। जब संकट पड़ा होगा तो वही सबके काम आता रहा होगा।’’ 

 

भीम ने कहा और फिर बोले, ‘‘द्रौपदी तुम चिंता मत करो। भीम सब काम ठीक करके आएगा। मैं महाराज कुबेर से लड़ाई मोल नहीं लूंगा। अच्छा तो मैं चला।’’ 
कह कर भीम वहां से चल दिए।                                
(क्रमश:)


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