कृष्णावतार

Sunday, Nov 27, 2016 - 01:17 PM (IST)

युधिष्ठिर ने ‘अजगर’ से कहा, ‘‘देवता, गंधर्व, यक्ष तुम जो कोई भी हो, यह पांडव पुत्र युधिष्ठिर तुम्हें प्रणाम करता है। यदि मेरे भाई ने कोई अपराध किया है तो तुम इसके लिए मुझे दंड दो और मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करके इसे छोड़ दो।’’ 

 

अजगर कुछ नहीं बोला केवल फुंकारता और जीभ लपलपाता रहा। उसके जवाब की कुछ पल प्रतीक्षा करने के बाद युधिष्ठिर ने फिर कहा, ‘‘तुम जो कोई भी हो परंतु इतना तो मैं समझ गया हूं कि तुम अजगर नहीं हो क्योंकि यदि तुम अजगर होते तो या तो अब तक तुम मेरे भाई की हड्डी-पसली चूर करके अपनी प्रकृति के अनुसार उसे निगल चुके होते और या फिर भीम ने ही तुम्हारे टुकड़े कर दिए होते इसलिए तुम से डरने का मैं कोई कारण नहीं देखता।’’

 

इसके बाद युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘यदि तुम शीघ्र ही मेरे भाई को नहीं छोड़ दोगे और अपने असली रूप में प्रकट नहीं हो जाओगे तो मैं तुम्हारा यह फुंकारें मारता हुआ शीश काट कर धरती पर गिरा दूंगा।’’

 

इतना कहने के बाद युधिष्ठिर ने तलवार निकाल ली और भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करते हुए अजगर की ओर बढ़े। उसी समय अजगर अदृश्य हो गया और भीम अपने हाथ-पैर झटकते हुए उठ कर खड़े हो गए। अब उस अजगर के स्थान पर एक महा बलशाली पुरुष राजमुकुट धारण किए और राजसी वस्त्र पहने युधिष्ठिर के सामने खड़ा था। 

 

तलवार संभाल कर युधिष्ठिर एक बार फिर उसे प्रणाम करके बोले, ‘‘यह तो मैं पहले ही समझ गया था कि तुम अजगर नहीं हो। अब यह भी बता देने की कृपा करो कि कौन हो तुम, तुम्हारी यह दशा किस कारण हुई और तुमने भीम को क्यों जकड़ लिया था? यदि इसने तुम्हारा कोई अपराध किया था तो इसके लिए मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं।’’  

(क्रमश:)

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