कृष्णावतार
Sunday, Nov 20, 2016 - 12:24 PM (IST)
जब भीम काफी देर तक न लौटे तो सब भाइयों को चिंता होने लगी और युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा, ‘‘यह भीम सदा ही कोई न कोई उत्पात मचाता रहता है। इससे कहीं टिक कर बैठा ही नहीं जाता। युद्ध करने के लिए तो जैसे हर समय उसके हाथों में खुजली होती रहती है। अभी इसने कुछ देर पहले कुबेर के अनेक राक्षसों और यक्षों का वध करके उनसे ही लड़ाई मोल ले ली थी। अब फिर न जाने कहां उत्पात मचा रहा होगा। चलो चल कर उसे देखें।’’
युधिष्ठिर ने आगे कहा, ‘‘तुम सब एक-एक सेवक के साथ अलग-अलग दिशाओं में जाओ। मैं उत्तर की ओर जाता हूं। जहां कहीं भी वह किसी को मिले कोई झगड़ा किए बिना उसे अपने साथ ले आना। यदि किसी से उसने झगड़ा किया हो तो समझा-बुझा कर उसे शांत कर देना। हम यहां तीर्थ यात्रा के विचार से आए हैं लड़ाई-झगड़े के लिए नहीं और न ही हमें ऐसा करना शोभा देता है।’’
युधिष्ठिर की बात सुन कर सहदेव दक्षिण दिशा की ओर तथा स्वयं युधिष्ठिर उत्तर दिशा की तरफ चल पड़े। कुछ दूर जाने पर युधिष्ठिर ने भीम के पैरों के निशान देखे। एक बहुत बड़ी पहाड़ी गुफा में एक अत्यंत भयंकर अजगर भीम को अपनी कुंडली में जकड़े बैठा था और भीम धरती पर बेसुध पड़े थे। वह अपने हाथ-पैर भी हिला नहीं पा रहे थे।
भीम को इस अवस्था में देख कर युधिष्ठिर दुखी हो उठे और सोचने लगे कि यह अजगर तो हो नहीं सकता। जो भीम हाथी, घोड़ों समेत रथ को उठा कर दूर फैंक देता है और मुक्का मार कर हाथी के सिर का कचूमर निकाल देता है उसे ही इस अजगर ने इतना बेबस कर दिया है। इससे भी अधिक हैरानी की बात यह है कि इसने अभी तक भीम को खाया क्यों नहीं? अत: अवश्य ही यह कोई ऋषि-मुनि या देवता है जिसने हमारी परीक्षा लेने के लिए भीम को दबोच रखा है क्योंकि यदि यह सचमुच अजगर होता तो भीम अब तक इसके टुकड़े कर चुका होता या भीम को निगल चुका होता।’’
(क्रमश:)