श्री कृष्ण उपदेश: शत्रु को हराने की इससे अच्छी तरकीब नहीं होगी कहीं

Tuesday, Dec 15, 2020 - 04:10 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कहा जाता है कि हर किसी व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा पल आता है, जब उसे सही गलत की पहचान भूल जाती है या यूं कहें उसे समझ नहीं आता कि उसे क्या करना चाहिए। ऐसे में कहा जाता है कि इन सभी समस्याओं का समाधान केवल एक ही जगह से मिल सकता है और वो है श्रीमद्भागवत गीता। जी हां, कहा जाता है इंसान को अपने जीवन में कैसी भी असफलता का सामना क्यों न करना पड़े अगर इसमें दिए गए श्री कृष्ण के उपदेशों को अपना ले तो उसका जीवन सुधर सकता है। मगर आज कल के भागदौड़ भरे इस जीवन में किसी के पास इतना समय नहीं हैं कि इसे पढ़ सके और ज्ञान प्राप्त कर पाए। ऐसे में हम आपको अपनी वेबसाइट के माध्यम समय-समय पर कई ऐसी नीतियों के बारे में बताते आए हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको बताने वाले श्री कृष्ण द्वारा बताई गई कुछ ऐसी ही बातें जिन्हें समझना प्रत्येक मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकती हैं।

श्री कृष्ण कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। संध्या होने के बाद जब रात्रि का अंधकार सारे संसार को धीरे–धारे अपने अंधकार में निगलने लगता है। तो यही अंधकार ब्रह्म मुहूर्त में भोर होने से ठीक पहले तनिक अधिक काला हो जाता है।

ठीक ऐसा ही होता मानव जीवन। जब हमारे जीवन की समस्याएं अंत पर होती हैं तो यहीं समस्याएं एक भीष्ण समस्या का रूप लेकर हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ी हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में अधिकतर लोग हार मान जाते हैं। परंतु अगर आप भय न खाएं, हार न मानें, दृढ़ता के साथ खड़े रहें, अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ते रहें तो प्रकाश के रूप में हमारा स्वागत करने के लिए सूर्यउदय हमारा स्वागत करता है।

बरगद का वृक्ष जितना विशाल होता है, उतना ही दृढ़ होता है। पतझड़ में वो सूख जाता है परंतु दुर्बल नहीं होता। न ही टूट कर गिरता है। मगर इनके विपरीत अगर दलदल में उपज़े वृक्षों की बात करें तो वो दिखने में तो बहुत बड़े होते हैं। पतझड़ के आने जाने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वो सदा हरे-भरे रहते हैं। परंतु इतने कमज़ोर भी होते हैं कि जलधारण के ज़रा से वेग से ही गिर जाते हैं।

मगर क्या आप ने कभी सोचा कि ऐसा क्यों होता है इसका कारण क्या है। इसका कारण है जड़ें, जिसकी जड़ें दृढ़ भूमि में हो वो हर प्रकार की ऋतियों को सह लेता है। इसके विपरीत जिसकी जड़े दलदल में वो अपने आप को उन जड़ों के अनूरूप दुर्लभ बना लेता है। कुछ ऐसा ही होता है मनुष्य, जो अधर्म, असत्य, कुकर्म पर उपजा होता है, वो समय की एक मार भी नहीं सह पाता। और जो मनुष्य सत्य से उपजा है वो अपने जीवन की हर समस्या को पार कर जाता है। जिसका अर्थात ये हुआ कि ये आप पर निर्भर करता है कि आप क्या बनना चाहते हैं।

हमारे जीवन में मित्र और शत्रु बड़ा महत्व रखते हैं। अगर गंभीरता से सोचा जाए तो कोई ऐसा क्षण नहीं जब हम अपने मित्रों और शत्रुओं के बारे में न सोचते हों। हमारा हर कार्य या तो हमारे मित्रों के हित के लिए होता है या अहित के लिए। हम हर स्थान या अपने मित्रों के साथ होते हैं या शत्रुओं के साथ। कोई नहीं चाहता कि उसका शत्रु खुश न रहे, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति चाहता है उसका नाश हो जाए। जिसके लिए वो उसे हर तरह से हानि पहुंचाने की भी कोशिश करता है। परंतु एक ऐसा भी मंत्र है जिसमें अपनाकर आपके उपरोक्त काम नहीं करने पड़ेंगे और आपके सारे शत्रुओं का नाश भी हो जाएगा। और वो मंत्र है शत्रु को मित्र बनाना। जी हां, अगर हम अपने सारे शत्रुओं को मित्र बना लिया जाए तो जीवन खुद ही सरल हो जाएगा।

 

Jyoti

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