कृष्णावतार

punjabkesari.in Sunday, Oct 30, 2016 - 09:49 AM (IST)

अर्जुन ने आगे बताया, ‘‘यह सब देख कर मैंने मन ही मन देवाधिदेव भगवान महादेव को प्रणाम करके उनकी स्तुति की और उनका प्रलयंकारी अस्त्र पाशुपत गांडीव पर चढ़ाया। पाशुपत के धनुष पर चढ़ते ही इस अस्त्र का कुछ ऐसा असर उन दैत्यों पर पड़ा कि अनेक दैत्य पृथ्वी पर गिर कर लोटने लगे। यह देखकर उनके सेनाध्यक्ष ने जल्दी से अपने रथ पर श्वेत ध्वजा लहरा दी और रथ को आगे लाकर हाथ हिला-हिला कर मुझसे पाशुपत अस्त्र का प्रयोग रोकने की प्रार्थना करने लगा। मैंने ‘पाशुपत’ को धनुष पर से उतार कर तरकश में रख लिया तो उसने अपना दूत भेज कर संधि की प्रार्थना की।’’ 

 

‘‘मैंने उसके दूत से कहा, ‘यह तुम्हारा राजा या सेनाध्यक्ष जो भी है’ उससे कह दो कि यदि ब्रह्मा जी की सौगंध खाकर भविष्य में कभी आर्यों या देवताओं का अहित न करने की प्रतिज्ञा करेगा और उनका मित्र बन कर समय पर उनकी सहायता करेगा तो मैं यहां से चला जाऊंगा नहीं तो मैं ‘पाशुपत अस्त्र’ का प्रयोग करके तुम सब का वंश नष्ट करने में जरा भी देर नहीं लगाऊंगा।’’

 

‘‘मेरा यह संदेश पाने के बाद उनका राजा हाथ जोड़ कर मेरे सामने आ गया। अपने समस्त शस्त्र खोल कर उसने मेरे सामने डाल दिए और कहने लगा, ‘मैं आपका उपकार मानता हूं। आज से मैं आपका भी दास हूं और देवताओं का भी। देवताओं और मानवों का अब मैं कभी भी अहित नहीं करूंगा। अब आप कुछ दिन यहां विश्राम कीजिए’।’’

 

उसकी बात सुनकर मैंने कहा, ‘‘मैं देवताओं की आज्ञा और आशीर्वाद से उनके कार्य करने निकला हूं इसलिए मैं कहीं भी विश्राम नहीं करूंगा। तुम्हारी प्रतिज्ञा से मैं प्रसन्न हूं।’’

 

‘‘इसके बाद दानव राजा ने मुझे वचन दिया कि, ‘मैं आपकी हर आज्ञा का पालन करूंगा परंतु मैं और मेरे साथी देवताओं पर भी भारी थे। हम सब को युद्ध में परास्त करने वाले वीर शिरोमणि आपका नाम और गोत्र जानने का सौभाग्य मुझे अब तक प्राप्त नहीं हुआ’। उसकी बात सुन कर मैंने उन्हें अपना परिचय दिया।’’    
(क्रमश:)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News