Sri guru arjan dev ji shaheedi diwas: आज है गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस, जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
punjabkesari.in Tuesday, May 23, 2023 - 08:56 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Martyrdom Day Guru Arjun Dev Ji: सिख धर्म के पहले शहीद, शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी की शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के मालिक गुरु अर्जुन देव अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह स्नेह था।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
इनका प्रकाश श्री गुरु रामदास जी के गृह में माता भानी जी की कोख से वैशाख वदी 7 सम्वत् 1620 मुताबिक 15 अप्रैल, 1563 ईस्वी को गोइंदवाल साहिब में हुआ। इनका पालन-पोषण गुरु अमरदास जी जैसे गुरु तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरुषों की देखरेख में हुआ। ये बचपन से ही शांत स्वभाव तथा भक्ति करने वाले थे।
गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक बहुत ‘वाणी’ की रचना करेगा। इन्होंने बचपन के साढ़े 11 वर्ष गोइंदवाल साहिब में ही बिताए तथा उसके बाद गुरु रामदास जी अपने परिवार को अमृतसर साहिब ले आए। इनकी शादी 16 वर्ष की आयु में ‘गंगा जी’ के साथ हुई।
गुरु रामदास जी के तीन सुपुत्र बाबा महादेव, बाबा पृथ्वी चंद तथा गुरु अर्जुन देव जी थे। गुरु रामदास जी ने 1 सितम्बर, 1581 ई. को जब गुरु अर्जुन देव जी को गुरु गद्दी सौंपी तो पृथ्वी चंद को इस फैसले की इतनी नाराजगी हुई कि वह गुरु अर्जुन देव जी का हर तरह से विरोध करने लगा।
गुरु रामदास जी ने उसे समझाने के अनेक यत्न किए पर वह न माना। उस पर गुरु पिता की शिक्षा का कोई असर न पड़ा।
गुरु गद्दी संभालने के बाद गुरु अर्जुन देव जी ने लोक भलाई तथा धर्म प्रचार के कामों में तेजी ला दी। इन्होंने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू किए गए सांझे निर्माण कार्यों को प्राथमिकता दी। अमृतसर में इन्होंने संतोखसर तथा अमृत सरोवरों का काम मुकम्मल करवा कर अमृत सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण कराया, जिसका शिलान्यास मुसलमान फकीर साईं मियांं मीर जी से करवा कर अपनी धर्म निरपेक्षता की भावना का सबूत दिया।
हरिमंदिर साहिब के चार दरवाजे इस बात के प्रतीक हैं कि यह हर धर्म व जाति के लिए खुला है। देखते ही देखते अमृतसर शहर विश्व भर की आस्था का केन्द्रीय स्थान तथा बड़ा व्यापारिक केन्द्र बन गया। इन्होंने नए नगर तरनतारन साहिब, करतारपुर साहिब, छेहर्टा साहिब, श्री हरगोबिंदपुरा आदि बसाए। तरनतारन साहिब में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया जिसके एक तरफ तो गुरुद्वारा साहिब और दूसरी तरफ कुष्ठ रोगियों के लिए एक दवाखाना बनवाया। यह दवाखाना आज तक सुचारू रूप से चल रहा है।
सामाजिक कार्य के रूप में इन्होंने गांव-गांव में कुंओं का निर्माण कराया। सुखमणि साहिब की भी रचना की। सम्पादन कला के धनी गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब का सम्पादन भाई गुरदास की सहायता से किया। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36 महान भक्त कवियों की रचनाएं बिना किसी भेदभाव के संकलित हुईं।
पवित्र बीड़ रचने का कार्य सम्वत् 1660 में शुरू हुआ तथा 1661 में सम्पूर्ण हो गया। जब गुरु ग्रंथ साहिब जी का सम्पादन किया जा रहा था तो पृथ्वी चंद ने बादशाह अकबर से शिकायत कर दी कि गुरु अर्जुन देव जी ऐसा ग्रंथ तैयार कर रहे हैं, जिसमें इस्लाम धर्म की निंदा की गई है।
अकबर ने अमृतसर साहिब से होकर जाते समय यह ग्रंथ साहिब देखने की इच्छा जाहिर की। भाई गुरदास जी तथा बाबा बुड्ढा जी से अकबर ने वाणी के कुछ शब्द सुने तथा उसकी सारी शंका दूर हो गई, उसने 51 मोहरें रखकर माथा टेका तथा बाबा बुड्ढा जी तथा बाबा गुरदास जी को सिरोपा भी भेंट किया। कुछ मोहरों के साथ सिरोपा गुरु अर्जुन देव जी के लिए भी भेजा। गुरु जी के कहने पर अकबर ने किसानों का एक वर्ष का लगान भी माफ कर दिया।
गुरु जी ने सदैव परमात्मा पर भरोसा रखने तथा मिल-जुल कर रहने का संदेश दिया। गुरु जी के प्रचार के कारण सिख धर्म तेजी से फैलने लगा। अकबर की मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर बादशाह बना तो पृथ्वी चंद ने उसके साथ नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं। जहांगीर को गुरु जी की बढ़ती लोकप्रियता पसंद नहीं थी। वह इस बात से भी नाराज था कि गुरु अर्जुन देव जी ने उसके भाई खुसरो की मदद की थी।
उसने गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 30 मई, 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा व सियास्त’ कानून के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया। ‘यासा व सियास्त’ के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद किया जाता था। गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो आप जी को ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया, जहां गुरु जी का पावन शरीर रावी में अलोप हो गया। जहां गुरु जी ज्योति ज्योत समाए, उसी स्थान पर लाहौर में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है।
विनम्रता के पुंज गुरु अर्जुन देव जी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया। इन्होंने कभी भी किसी को कटु वचन नहीं बोले। इनका संगत को बड़ा संदेश था प्रभु की रजा में राजी रहना।
सबसे ज्यादा पढ़े गए
Related News
Recommended News
Recommended News

राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ पहुंचे नड्डा-शाह, BJP नेताओं संग बैठक कर लिया फीडबैक

चुनाव आयोग का तीन दिवसीय राजस्थान दौरा आज से, चुनावी तैयारियों का लेगा जायजा

Inspirational Story: खुद को समझदार और बाकी सबको मूर्ख समझने वाले पढ़ें ये कहानी

सारण में ट्रेन से कटकर 65 वर्षीय व्यक्ति की मौत, शव की शिनाख्त में जुटी पुलिस