...तो इसलिए शादी के लिए लड़का-लड़की में होना चाहिए AGE DIFFERENCE

Thursday, May 16, 2019 - 04:12 PM (IST)

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शादी का ख्वाब हर किसी का होता है। लड़का हो या लड़की दोनों ये चाहते हैं कि उनका जीवनसाथी ठीक वैसा हो जैसा उन्होंने सोचा होता है। कहने का भाव ये है शादी के लिए लड़का-लड़की दोनों की तरफ़ से इच्छाएं एक समान होती हैं। मगर लड़की की तरफ़ शादी को लेकर न केवल वो बल्कि उसके पूरे परिवार का यही सपना होता है कि उसे ऐसा घर मिले जहां उसे वैसे ही व उतने ही मान-सम्मान और लाड प्यार से रखा जाए जितना उसके अपने घर में मिलता है। इसलिए जैसे ही लड़की बड़ी होती है उसके लिए लड़के की तलाश शुरु हो जाती है। इस दौरान एक बात आम सुनने में मिलती है कि लड़की के लिए जब लड़के की तलाश की जाती है, तो उसके उम्र को कुछ ज्यादा प्रधानता दी जाती है। इसके लिए यही कहा जाता है कि लड़के की उम्र लड़की से हमेशा बड़ी होनी चाहिए। मगर ऐसे क्यों? ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आख़िर क्यों शादी के समय लड़के और लड़कियों के बीच उम्र के फासला को इतनी महत्वता दी गई और क्या शादी के बंधन में बंधने वाले लड़का-लड़की में उम्र का फांसला होना ज़रूरी है या नहीं।

तो चलिए आपको बताते हैं इससे संबंधित कुछ खास बातें-
शायद इस सवाल का जवाब हां और न दोनों में हो, इसके पीछे तर्क भी दिए जाएंगे। लेकिन कुछ ऐसे तर्क है जिनसे साबित कर दिया जाएगा कि लड़के की उम्र लड़की की उम्र से ज्यादा क्यों होनी चाहिए।

इतना तो सब जानते ही होंगे कि भारत में कानूनी तौर पर विवाह के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष और लड़के की उम्र 21 वर्ष तय की गई है। जबकि बायोलॉजिकल रूप से देखा जाए तो लड़का और लड़की 18 वर्ष की उम्र से शादी योग्य हो जाते हैं।

मगर आपको बता दें कि  कानून और पंरपरा का हिन्दू धर्म से कोई संबंध नहीं हैं। प्राचीन समय में बचपन में ही शादी कर दी जाती थी, जिसे हम बाल विवाह कहते हैं। शादी के वक्त बहुत स अजीबो-गरीब परंपराएं भी होती थी, जबकि इसका संबंध हिन्दू धर्म से नहीं था।

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, 16 संस्कारों में विवाह भी मुख्य संस्कार है। अगर कोई संन्यास नहीं लेता है, तो उसे शादी करना ज़रूरी है और उसे गृहस्थ जीवन व्यतीत करना होगा। माना जाता है कि विवाह करने के बाद पितृऋण चुकाया जा सकता है। विवाह वि+वाह से बना है। इसका मतलब होता है विशेष रूप से वहन करना। यानि उत्तरदायित्व का वहन करना। इसके अलावा इसे पाणिग्रहण भी कहा जाता है।

आश्रम प्रणाली में विवाह की उम्र 25 वर्ष थी। दरअसल, विवाह संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में 'त्रयोदश संस्कार' है। स्नातकोत्तर जीवन विवाह का समय होता है। माना जाता था कि विद्या प्राप्त करने के बाद ही विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना चाहिए। शिक्षा विज्ञान के मानें तो 25 साल की उम्र तक शरीर में वीर्य, विद्या, शक्ति और भक्ति का पर्याप्त संचय हो जाता है। इस संचय के आधार पर ही व्यक्ति गृहस्थ आश्रम की सभी छोटी-बड़ी जिम्मेदारियों को निभा पाने में सक्षम होता है।

वहीं, श्रुति वचन के अनुसार, हिन्दू संस्कृति में विवाह कभी न टूटने वाला एक परम पवित्र धार्मिक संस्कार है, यज्ञ है। वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान कराया जाता है।

जहां तक उम्र के फासला का सवाल है तो ऐसा हिन्दू धर्म कोई खास हिदायत नहीं देता है। लड़की की उम्र ज्यादा हो, समान हो या कम, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। हिन्दू धर्म के अनुसार अगर दोनों संस्कारवान हैं तो दोनों में समझदारी होगी अगर नहीं हैं तो शादी एक समझौता भर है और यह समझौता कब तक कायम रहेगा, यह कोई नहीं कह सकता है।

Jyoti

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