Smile please: जीवन में Turning point चाहते हैं तो...

Thursday, Mar 28, 2024 - 10:42 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Smile please: आज हम सब एक ही बीमारी का शिकार हैं- वह है खुद को सही समझना और दूसरों में दोष ढूंढना। घर के बड़े-बुजुर्गों को बच्चों से शिकायत रहती है कि वे बड़ों का सम्मान नहीं करते, बच्चे बुजुर्गों को विघ्नकारी मानते हैं, जो उनको हर बात में टोकते हैं और उनकी आजादी में रोड़ा अटकाते हैं। 

जनता सरकार को कोसती है, कर्मचारी अपने नियोक्ता में दोष ढूंढते हैं, नौकरीपेशा वाले व्यापारियों को टैक्स चोर समझते हैं, जबकि व्यापारी नौकरीपेशा वालों को मुफ्तखोर, जो बिना कुछ काम किए सिर्फ मोटा वेतन लेते हैं। किराएदार को मकान मालिक लूटने वाला लगता है, ग्राहक दुकानदार को ठग समझता है, बहू को सास अच्छी नहीं लगती और सास को बहू आदि-आदि। सबसे मजेदार बात तो यह है कि आरोपी और प्रत्यारोपी यही कहते हैं कि हम तो सही हैं, पर दूसरे ही विश्वास के काबिल नहीं हैं। हम सिर्फ औरों के ही ऐबों पर नजर रखे हुए हैं, इन्हीं कारणों से ही हम बेचैन, अशांत, दुखी, चिंतित और निराश नजर आते हैं। हमारे अंदर जमी अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या एवं लालच की परतें यह देखने ही नहीं देतीं कि जरूरत अपने भीतर के चक्र को सही करने की है क्योंकि : 

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। जब पड़ेगी अपनी ही बुराइयों पर नजर, तो निगाह में कोई बुरा ही नहीं रहेगा॥

अगर हम अपने बेचैन, अतृप्त और स्वरचित कष्टमय जीवन से मुक्त होना चाहते हैं तो जरूरत है खुद में परिवर्तन लाने की। जब मनुष्य अपनी गलतियों का वकील और दूसरों की गलतियों का जज बन जाता है, तो फैसले नहीं, फासले ही बढ़ते हैं। 

स्वामी विवेकानंद ने बहुत ही अच्छी बात कही है कि चाहे हम घर को ‘चैरिटी एसाइलम’ (दान शरणस्थली) बना लें, जमीन पर अस्पताल खोल लें, हम तब तक दुख को ही भोगेंगे जब तक हम अपना चरित्र नहीं बदलेंगे। 

यह सोचने की और समझने की जरूरत है कि जिन-जिन बुराइयों को हम देखते हैं, उनके प्रति हम कितने संजीदा हैं और उन्हें दूर करने के लिए कितने प्रयासरत हैं।   

जगत को नहीं, खुद को ‘बदलने की जरूरत’ केवल तुम ही अपनी जिंदगी को बदल सकते हो, कोई दूसरा तुम्हारे लिए यह काम नहीं कर सकता। —महात्मा बुद्ध

Niyati Bhandari

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